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प्राकृतव्याकरणम् [सू. ८-४-१९९ न्यसो णिम-गुमौ ॥ ८।४ । १९९ ।। न्यस्यतेरेतावादेशौ भवतः ॥ णिमइ । णुमइ ॥ १९९ ॥
पर्यसः पलोट्ट-पल्लट्ट-पल्हत्थाः ॥ ८।४।२०० ॥ पर्यस्यतेरेते त्रय आदेशा भवन्ति ॥ पलोट्टइ । पल्लट्टइ। पल्हस्थइ ॥ २० ॥
निःश्वसेझङ्खः ॥ ८ । ४ । २०१॥ निःश्वसेझंट इत्यादेशो वा भवति ॥ झलइ । नीससइ ॥ २०१॥ उल्लसेरूसलोसुम्भ-णिल्लंस-पुलआअ-गुञ्जोल्लारोआः ॥ ८।४।२०२॥ ''उल्लसेरेते षडादेशा वा भवन्ति ॥ ऊसलइ । ऊसुम्भइ । णिल्लसइ । पुलआअंइ । गुञ्जोल्लइ । हस्वत्वे तु । गुजुल्लइ । आरोअइ । उल्लसइ ।। २०२॥
- भासेर्भिसः ॥ ८ । ४ । २०३ ॥ भासेर्भिस इत्यादेशो वा भवति ।। भिसइ । भासइ ॥ २०३ ॥
- ग्रसेधिसः ॥ ८।४। २०४॥ ग्रसेर्घिस इत्यादेशो वा भवति ।। घिसइ । गसइ ॥ २०४ ॥
अवादगाहेर्वाहः ॥ ८ । ४ । २०५ ॥ • अवात्परस्य गाहेर्वाह इत्यादेशो वा भवति ॥ ओवाहइ । ओगाहइ ॥ २०५ ॥
___ आरुहेश्चड-बलग्गौ ॥ ८ । ४ । २०६॥ .. आरुहेरेतावादेशौ वा भवतः ॥ चडइ । वलग्गइ । आरुहइ ॥२०६॥
मुहेर्गुम्म-गुम्मडौ ॥ ८।४।२०७॥ मुहेरेतावादेशौ वा भवतः ॥ गुम्मइ । गुम्मडइ । मुज्झइ ॥ २०७ ॥
दहेरहिऊलालुवौ ॥ ८।४।२०८ ॥ दहेरेतावादेशौ वा भवतः॥ अहिऊलइ । आलुइ । डहइ ॥ २०८ ।। ग्रहो वल-गेह-हर-पङ्ग-निरुवाराहिपच्चुआः॥८।४।२०९ ॥
ग्रहेरेते षडादेशा भवन्ति ॥ वलइ । गेण्हइ । हरइ । पङ्गइ । निरुवारइ । अहिपच्चुअइ ॥ २०९ ॥