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________________ सू. ८-४-१९८ ] स्वोपज्ञवृत्तिसहितम् गवेषेढुण्ढुल्ल-ढण्ढोल-गमेस - घत्ताः || ८|४|१८९ ॥ गवेषेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति || दुण्डुल्लइ ढण्ढोल | गइ | घत्तइ | गवसइ ॥ १८९ ॥ श्लिषेः : सामग्गावयास - परिअन्ताः ।। ८ । ४ । १९० ॥ श्लिष्यतेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति || सामग्गइ | अवयास | परिअन्तइ । सिलेसइ ॥ १९० ॥ प्रक्षेश्वोप्पडः ।। ८ ।४ । १९१ ॥ चोपड इत्यादेशो वा भवति ॥ चोप्पडइ । मक्खइ ॥ १९१ ॥ काङ्क्षराहाहिलङ्घाहिलङ्ख-वच्च चम्फ-मह-सिंह- विलुम्पाः || ८|४|१९२ ॥ काङ्क्षतेरेतेष्टादेशा वा भवन्ति || आइ । अहिलङ्घइ । अहिलइ । वच्चइ । वम्फइ । महइ । सिहइ । विलुम्पइ । कइ || १९२ ॥ प्रतीक्षेः सामय - विहीर - विरमालाः ।। ८ । ४ । १९३ ॥ प्रतीक्षेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति ॥ सामयइ | विहीरइ । विरमालइ t पडिक्खइ ॥ १९३ ॥ तक्षेस्तच्छ-चच्छ-रम्प-रम्फाः ।। ८ । ४ । १९४ ॥ तक्षेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति ॥ तच्छइ । चच्छइ । रम्प | रफइ । तख ॥ १९४ ॥ विकसेः कोआस - बोसट्टौ ।। ८ । ४ । १९५ ।। विकसेरेतावादेशौ वा भवतः ॥ कोआसइ । वोसट्टइ | विअसइ ॥ १९५॥ हसेर्गुञ्जः ।। ८ । ४ । १९६ ॥ हसेर्गुञ्ज इत्यादेशो वा भवति ॥ गुञ्जइ । हसइ ॥ १९६॥ स्रंसेर्व्हस - डिम्भौ ।। ८ । ४ । १९७ ॥ स्रंसेरेतावादेशौ वा भवतः ॥ ल्हसइ । परिल्हसइ सलिल - वसणं । डिम्भ | संसइ ॥ १९७॥ त्रसेर्डर - बोज्ज - वज्जाः ।। ८ । ४ । १९८ ॥ डरइ । बोज्जइ । वज्जइ । सेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति ।। १२५ तसइ ॥ १९८ ॥
SR No.010651
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorParshuram Sharma
PublisherMotilal Laghaji
Publication Year
Total Pages343
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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