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________________ उनमे थे, जो बाद मे भिन्न-भिन्न भाषाओ मे परिणत हुए, उनका अध्ययन इन व्याख्यानो का प्रधान विषय है । इस विषय की आलोचना के पहले आर्य भाषा का भारत बाहर का इतिहास और ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धति का विकास और उनकी मर्यादाओ पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। “आज से करीब-करीब दो सदी पहले मानव के विकासक्रम के अभ्यास के साथ-साथ भापा के भी विकास का इतिहास है ऐसी प्रतीति होने लगी। अन्यान्य भाषाओं की तुलना शुरू हुई और उनके परस्पर सम्बन्ध की परीक्षा हुई । खास करके, प्रारम्भ मे, भापा को एक इतिहास की दृष्टि से परखने मे डार्विन की विचार सरणी से ठीक-ठीक वेग मिला । डार्विन ने दो ग्रथ लिखे 'डीसेन्ट ऑव मेन' और 'ओरिजिन ऑव स्पीशीझ' । इनके अतिरिक्त जो अन्य लेख लिखे उसमे उन्होने भाषा की उत्पत्ति के बारे मे भी ऊहापोह किया है। भाषा की उत्पत्ति का यह प्रश्न आज तो भाषाविज्ञानियो ने छोड़ ही दिया है, किन्तु डार्विन की विचार परम्परा के असर से भाषाविज्ञान के प्रारम्भ काल मे ही जीवविज्ञान की तुलनात्मक पद्धतियो का ठीक असर पडा, और आज तक ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धति मे उन्ही की परिभाषा अपनाई गई है। बाद मे, योरप की प्राचीन भाषाओ की तुलना होने लगी, और उन्नीसवी शताब्दी के प्रारम्भ मे फ्रेच और अग्रेजो के द्वारा सस्कृत का परिचय उन विद्वानो को हुआ। सस्कृत के परिचय ने भाषाविज्ञान को असाधारण वेग दिया, और इसमे भाषाइतिहास की नीव डाली जर्मनो ने । ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धति के अग्रणी जर्मन विद्वान् और कुछ डेनिश विद्वान् ही रहे । इस काल मे इण्डोयूरोपियन गण की अन्यान्य भाषाओं के इतिहास की खोज हुई, और इण्डोयूरोपियन के स्वरूप का भी काफी विचार हुआ । प्रथम विश्वयुद्ध तक इस विषय मे नेतृत्व जर्मन और फ्रेच विद्वानो का रहा। उसके बाद, यानि बीसवी शताब्दी के दूसरे और तीसरे दशको मे, समाजविद्या के अन्य अगो की तरह, भाषाविज्ञान मे भी खूब परिवर्तन आ गया। ध्वनिविज्ञान का खूब विकास हो गया । और कार्यकारणभाव की खोज की अपेक्षा भाषा के प्रक्रिया और स्वरूप ( Process, Structure) क्या है उनकी खोज आगे बढ़ी । यह स्वरूपविवेचक भाषाशास्त्र (Structural
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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