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________________ ( ३ ) नुसार भाषा पसद करते थे। तत्कालीन बोलचाल की भापा से उनको कोई सम्बन्ध न था। वर्तमान कालको छोड़कर, भारतमे हमेशा साहित्य और सस्कृति मे काफी अतर रहता ही आया है। बुद्ध और महावीर से प्राकृत काल का प्रारम्भ होता है, और यह काल, साहित्यस्वरूप मे करीब-करीब विद्यापति, ज्ञानेश्वर आदि नव्य भारतीय आर्य आपा के आदि लेखको से चार या पॉच शताब्दी से पहले खतम हो जाता है। भाषाविज्ञानियों की परिभाषा मे इनको मध्य भारतीय आर्य ( Middle Indo-Aryan ) कहते है। उसके बाद नव्य भारतीय आर्य भाषाओ ( New Indo-Aryan ) का आरग्भ दसवी शताब्दी से होता है। हमारा प्रस्तुत अध्ययन का विषय है प्राकृत काल । यह काल करीबकरीब पन्द्रह सौ साल तक इस विशाल भारत देश मे जारी रहा । कोई भी भाषा इतने काल तक स्थिर रह नहीं सकती, खास करके इस विशाल देश मे तो कभी नहीं। भिन्न-भिन्न काल मे भिन्न-भिन्न स्थल पर तरह-तरह की प्राकृतो का विकास होता चला होगा, ओर उनके तरह-तरह के नाम भी होगे । जैसे एक हो लैटिन भापा कालक्रम से एक जगह स्पेनीश कहलाती है, दूसरी जगह फ्रेच कहलाती है, कही प्रोवॉसाल, कही पोर्तुगालो, वैसे ही एक प्रकार को प्राकृत भाषा काल स्थल के भेद से एक जगह गुजराती, दूसरी जगह मराठी, कही बॅगला, कही हिन्दी ऐसे नाम पाती है। प्राकृत के बहुत से भेद उत्तरकालीन वैयाकरणो और साहित्यकारो ने बताये है। किन्तु नामो की इस विपुलता से भाषावैज्ञानिक को कुछ भी घबराहट न होनी चाहिये । अमुक भाषा का अमुक नाम क्यो हो गया यह तो एक ऐतिहासिक अकस्मात् है, भाषावैज्ञानिक को उससे खास मतलब नहो, वह जानता है कि वह नामाभिधान भाषा की किसी विशिष्टता का द्योतक नहीं है । अमुक भापा को गुजराती कहना और अमुक को मारवाड़ी या बिकानेरी कहना, अमुक को बंगला कहना या अमुक को मैथिली इस अभिधान से भाषावैज्ञानिक को कोई झगड़ा नहीं । उसको नाम से वास्ता नही, लक्षण से है। उस काल मे उस भापा के व्यावतेक लक्षण क्या थे यह हकीकत उसको दृष्टि से अधिक महत्त्व की है। उसी दृष्टि से प्राकृत काल की प्राचीनतम परिस्थिति क्या थी, किस-किस तरह के बोलीभेद
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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