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________________ ( ५६ ) अच्छी आवृत्तियां कहा ? आज सबसे अधिक महत्त्व प्राकृत साहित्य के संशोधन मे इन आगमो के व्यवस्थित सपादन का है। पिछले कई सालो से मुनि पुण्यविजय के परिश्रम से पाटण, खभात, जैसलमेर इनके भंडारो से अनेक प्राचीन प्रतियो का पुनरुद्धार हो रहा है, और पुरोगामी विद्वानो को उपलब्ध न थी ऐसी कई प्रतियाँ प्रकाश मे आई है, और आज, हमको उन प्रतियो का उपयोग करना चाहिए । पाठनिर्णय के शास्त्रीय सिद्धांतो के अनुसार प्रतियो की पाठपरपरा नियत करने के बाद ही व्यवस्थित संपादन शक्य होगा । हरेक आगम की आवृत्ति के साथ उसका शब्दकोष, उसकी भाषा, उसका अन्य प्राकृत साहित्य से संबंध, अन्य परपरा से उसकी तुलना, इत्यादि सब काम होना चाहिए । इस सशोधन का आनुपंगिक काम चूर्णि और नियुक्तियो का सपादन होगा। इन ग्रंथो की भाषा शैली का अभ्यास मध्य भारतीय आर्य के भाषा f कास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है, यह बात आज तो एजर्टन के बुधिस्ट सस्कृत के मूल्यवान सशोधनो मे स्पष्ट है । ___ आपने देखा होगा कि पिछले कुछ सालो से इस शास्त्रीय संपादन के कार्य से भारतीय भाषाविज्ञान के अध्ययन को असाधारण वेग मिला है। पूना के महाभारत के सपादन से महाभारत के नीचे बहता प्राकृतो का प्रवाह स्पष्ट होता जा रहा है। इस तरह से जैन आगमो के व्यवस्थित सपादन सशोधन से हम जैन, बौद्ध, हिदु, अर्धमागधी पालि वा महाभारत की भाषापरपरा एक दूसरे से कितनी निकट थी वह भी हम देख सकेगे । ऐसे सपादनो से ही हमारे पास प्राकत कोश तैयार होगा। और ऐसे कोश के बाद ही प्राकृत व्याकरण लिखा जा सकेगा। पीशल का प्राकृत व्याकरण पचास साल पहले प्रकाशित हुआ उनको समक्ष नथी संशोधित श्रावृत्तियॉ, न उन्होंने शिलालेखो का उपयोग किया, न पालि का ।आजतो ऐसे व्याकरण आवश्यकता है जहाँ हम सब तरह के प्राकृतो का जैन वा बौद्ध धार्मिक साहित्य, शिलालेखो के प्राकृत, नाटका के प्राकृत, साहित्यिक प्राकृत, वैयाकरणो के प्राकृत और भारत बाहर के प्राकृत का समग्र दृष्टि से ख्याल कर सके । ऐसा व्याकरण ही एक ओर वैदिक और दूसरी ओर से अपभ्रंश और नव्य भारतीय आर्य भाषा को संलग्न कर सकेगा। संपादन और कोश के पहले व्याकरण नहीं हो
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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