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________________ ( ५५ ) शिलालेख के प्राकृतो की आधारभूत आवृत्तियाँ एपिग्राफिका इण्डिका द्वारा, ओझा जी, सनार, हुळहा, वुल्नर, कोनाउ के सशोधना से हमारी समक्ष व्यवस्थित स्वरूप से प्राप्त है। इससे आवृत्तियो के आधार पर शिलालेखो के प्राकृतो की भाषा का अध्ययन भी हो सका है । मेन्दले का स्थल काल की मर्यादाओं को लक्ष्य मे रखकर किया हुआ शिलालेखो के प्राकृतों की भाषा का अध्ययन, ब्लोख का अशोक की भाषा का अभ्यास, इत्यादि महत्त्व के सशोधन हमको मिलते है । · भारत बाहर के प्राकृतो की आवृत्तियां और उनकी भाषा के संशोधन ल्यूडर्स के ब्रुकटुक डेर बुद्धिस्टिशन ड्रामेन से, डो बरो के और सना और रूके अध्ययनो से मिलते है । नाटक के प्राकृत, और वैयाकरणो के प्राकृतो के भी काफी प्रकाहो चुके है। प्रीन्ट्र्स का और सुखथनकर का भासकी भाषा का अभ्यास, ग्रियर्सन, वैद्य, नित्तिदोलची इ० का प्राकृत व्या करणो का सपादन सशोधन हो चुका है । किन्तु आजपर्यन्त नाटको के प्राकृत के संपादन मे बिलकुल अराजकता फैली हुई है । हमारे विद्यापीठो मे संस्कृत, प्राकृत और पालि के अभ्यासक्रम मे इतने watertight_compartments है कि भारतीय भाषा और साहित्य का अविच्छिन्न इतिहास एम ए तक के अभ्यास में किमी विद्यार्थी को नहीं कराया जाता । जहाँ तक भाषाओ के अभ्यास मे हमारी ष्टि विशाल न होगी वहां तक यह अराजकता रहेगी ही । इस विपय मे अधिक कहता नही, किन्तु आपको प. सुखलाल जी का लखनौ प्राच्यविद्या परिषद मे प्राकृत विभाग के प्रमुखपद से दिया हुआ व्याख्यान पढने का सूचना रता हू । प्राकृतो के यह सब अगो के संपादन सशोधन मे महत्त्व की त्रुटि रहती है जैन साहित्य के अनुसधान की और विशेष रूप से आगम साहित्य के सपादन की । साहित्यिक प्राकृतो की कुछ आवृत्तिया हमारे पास है। मुनि चतुरविजय, पुण्यविजय संपादित सुदेव हिडी, वेबर की गाथासप्तशती, डो उपाध्ये के अनेक महत्त्व के सपादन द्वारा हमारी समक्ष प्राकृत साहित्य का कुछ आशास्पद सग्रह हो चूका है । किन्तु आगम साहित्य के होर्ले के उवासगदसाओ, शुब्रिग के आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध, और शार्पान्तिए के उत्तराध्ययन को छोडकर आगमो की
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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