________________
सकेगा। रोथ और बोथलिक के बृहत् कोश के बाद ही व्हिनी और वाकरनागेल के मशहूर व्याकरण शक्य हो सके । आगमो का संपादन सशोधन हमारा पहला काम है।
आज जैन समाज अपने साहित्य और इतिहास को उदारता से देख सकता है । प्रस्तुत व्याख्यानो का आयोजन भी उस उदार दृष्टि का परिणाम है । अनेक तरह की सशोधन प्रवृत्तियो को उससे सहारा मिला है। माणिक्यचद्र प्रथमाला, सिघी प्रथमाला, सन्मति प्रकाशन, इ० के द्वारा सशोधन को वेग मिल रहा है। अनेक व्यक्ति और सस्थाएँ इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण सशोधन बौद्धिक उदारता से कर रहे है । मुनि पुण्यविजय, प० सुखलाल जी तो आप ही संस्थारूप है, और ऐसी कई प्रवृत्तियो को वेग दे रहे है।
इन सब व्यक्तियो और संस्थाओ को हम विनति करते है कि अब आगमो का सपादन सशोधन भी ऐसी उदार दृष्टि से किया जाय ।
से काम के बिना जैन साहित्य और सस्कृति का इतिहास अपूर्ण ही रह जायगा, और भारतीय भाषा इतिहास का एक प्रकरण अलिखित रह जायगा । मुझे आशा है कि मेरी इस अपील मे आप सब साथ देगे, और यह काम शीघ्र ही प्रारभ होगा।