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________________ ( ४८ ) वैदिक दुळम <* दूडम *दूष-दभ् < दूझ - द , नोड <*निझड-अ< नि-झद्-अ< अनि-स्द-अ <नि-सदः । इसके अलावा वेद मे ऐसे अनेक उदाहरण मिलते है, जहाँ र के सान्निध्य मे आनेवाले दत्यवर्गो के, मूर्धन्य होते है। ___ इन नियत सयोगो मे, प्राचीन भारतीय आर्य शापा मे मूर्धन्य वर्णो का विकास आरभ होता है। यहाँ, अभी कोई द्राविडी वा आर्येतर शब्द आता नहीं- ये शब्द इडोयुरोपियन गण के ही है। भारतीय आये भाषा का यह ध्वनिविकास उसकी बनिव्यवस्था की विपता है, उसके ध्वनितत्र का परिणाम है। ज्यो ही भारतीय आर्य में मृर्धन्य वर्ण के उच्चारण की शक्यता शुरू होती है त्या ही तलभापात्रों के मूर्धन्य वर्ण वाले शब्दो को भारतीय आर्य नापा मे आने की सुविधा हो जाती है । जो प्रक्रिया अमुक नियत सयोगा मे ही होती थी उस अधिक वेग मिला, और जहाँ ऐसे सयोग न थे वहाँ भी मूर्धन्य वर्णो का विकास बढ़ा । वेद मे मूर्धन्य वर्ण डेढ प्रतिशत मिलते है, और यह गति मिलने से, प्राकृत और पालि काल मे खूब बढ़ जाते है। मूल मे जो ध्वनि विकास की सम्भावना थी उसको तलभापा ने वेग दिया। मागधी की विशिष्टता है अकारान्त नामो के प्र ए व - अस्> -ए। उसका प्रारम्भ तो होता है वेद काल मे ही। अमुक नियत सयोगो मे ही- जहाँ अनुगामी दन्त्य था वहाँ अस् का -ए होता था सुरे दुहिता, एधि (अझ - धि < *अस् धि)। कालक्रम से यह -ए, पूर्व की बोलियो के प्रभाव से, कदाचित् यहाँ की तल भापा का प्रभाव हो, मार्वत्रिक होकर पूर्व की बोली का विशिष्ट अग बनता है। तलभाषा गतिप्रेरक बल है, किन्तु मूल मे जहाँ गति की सम्भावना भी न हो, वहाँ वह नई प्रक्रिया पैदा नहीं कर सकती। संयुक्त व्यजनों का उच्चारण प्राकृतो के व्वनि विकास का एक महत्व का लक्षण है। प्राचीन भारतीय आर्य मे जन भक्त, रक्त जैसे संयुक्त व्यंजनो के उच्चारण मे उनके अंगभूत दोनो व्यजनो का स्फोट होता था-क्त में क् और त का स्फोट ( explosion ) होता था। डो चेटर्जी ने उनके Indo Aryan and Hindi मे इस प्रक्रिया की विशद आलोचना की है। उस काल मे उच्चारण करने वाली प्रजा मे
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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