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( २७ ) अ होते थे वहां स्वाभाविकतया त और द मिलते है,और द्वि का उच्चारण एकमात्रिक monosyllabic होने से उसका बि होने की शक्यता है। नियप्राकृत मे और उत्तरकालीन खरोष्ठी आलेखो मे भी त्व> प>प होता है निय चपरिश (चत्वारिंशत् ),
खरोष्ठी आ० सप- (मत्व-), एकचपरिशइ ( एकचत्वारिशत्), नियप्राकृत मे द्व के ब और द्व दोनो मिलते है-बदश, बिति, द्वदश, द्वि, मद, द्वर।
क्ष और त्स के छ और स होते है। इनमे छ पश्चिमोत्तर की विशेषता है, स तो राब आलेखो की सामान्य प्रक्रिया है। शाह० मान० मोछ (मोक्ष) चिकिसा (चिकित्सा),
अपवाद शाह० खुद्रक, मान० खुद (क्षुद्र-)। नियप्राकृत मे क्ष का छ होता है किन्तु त्स वैसे ही रह जाता है। निय प्रा० क्ष छेत्र, योगछेम, भिछु, दछिन, अपवाद खोरितग ( सुर-), भिघु (भिक्षु-) त्स संवत्सर, वत्स, अपवाद त्स अोसुक (औत्सुक्य-)।
स युक्त सयुक्त व्यजन कचित् अनुगामी दत्य कि नति करता है, कचित् दत्य बच भी जाता है। दूसरे आलेखो कि अपेक्षा वह नतिभाव उल्लेखनीय है।
शाह० मान० · ग्रहथ, अस्ति, उठन ( उस्थान,-), शाह० : अस्त, वित्रिटेन (विस्तृतेन ), मान० . अढ (अष्टन् ),
शाह के आलेख मे दंत्य और मूर्धन्य की नियतता नहीं, जैसे रेस्तमति, स्नेठम, अस्तवष (मान-अठवप), इससे अनुमान हो सकता है कि वहा मूर्धन्यो का उच्चारण वर्त्य होगा।
स्म> स्व> स्प । सातमी व का स्मि (स्मिन् ) होता है। स्पग्रम (म्वर्गम् )।
निय प्राकृत मे स्म > म्म, और सातमी ए व. का म्मि होता है। तदनुसार खरोष्ठी आलेखो मे भी । प्राकृत धम्मपद मे तीनो रूपस्म, स्व और स मिलते है अनुस्मरो, अस्मि, स्वदि, प्रतिस्वदो,-स