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( २१ ) हो जाता है । इसमे हमको अधिक सहाय तो सम्राट अशोक के शिलालेख-जो ई० पू०२७०-२५० के अरसे मे लिखे गए है-से मिलती है। उनके विशाल साम्राज्य की फैली हुई सीमाओ पर खुदवाये गये इन शिलालेखो को सचमुच ही भारत का प्रथम लिग्वीस्टीक सर्वे का नाम मिला है । अशोक ने ये शिलालेख उनके धर्म को फैलाने के लिए व उनके राज्याधिकारीओ को उनकी दृष्टि समझाने के लिए खुदवाये । यद्यपि ये शिलालेख एक ही शेली मे लिखे गए है, फिर भी उनकी भाषा मे स्थलानुसार भेद मालूम होता है । दूर उत्तरपूर्व मे शाहबाझगढी और मानसेरा मे लिखे गए लेख दक्षिण-पश्चिम के गिरनार के लेख से भाषादृष्टि से भिन्न है। इन शिलालेखो के सभी भाषाभेद यद्यपि समझाना मुश्किल हे तो भी ये शिलालेख तत्कालीन भापापरिस्थिति समझने के लिए एक अनोखा साहित्य है । ये लेख लिखे गए ई० पू० के तीसरे शतक मे, और उनकी भाषा है अशोक की राजभापा, उनके administration और court की भाषा । राजभाषा हमेशा बोलचाल को भापा से कुछ प्राचीन ( archaic) ढग की होतो है। उससे उसकी शिष्टता निभती है । ई० पू० के तीसरे शतक को राजभाषा, ई० पू० के पॉचवे शतक कि पूर्वी बोलियो से अधिक भिन्न न होगी ऐसा अनुमान करने मे खास बाधा नहीं । इससे, अशोक की भाषा का अध्ययन हमको बुद्ध और महावीर की समकालीन भापा के निकट ले जाता है। भाषादृष्टि से अशोक के लेख चार विभाग मे बॉट सकते है-उत्तर पश्चिम के लेख, गिरनार का लेख, गगा जमना से लेकर महानदी तक के लेख, और दक्षिण के लेख । जिस प्रदेश की राजभापा से अशोक की राजभाषा खास तौर से भिन्न न हो, अथवा जहाँ अशोक की राजभाषा आसानी से समझी जा सकती हो वहाँ अशोक के लेख अपनी निजी पूर्वी बोली मे ही लिखे जायें यह स्वाभाविक अनुमान हो सकता है । इस दृष्टि से गगा जमुना से लेकर महानदी तक के उनके लेख कुछ-कुछ भेद छोडकर अशोक की राजभाषा मे ही लिखे गए है। किन्तु जो प्रदेश दूर दूर के है, जहाँ की भाषा अशोक की राजभापा से अत्यन्त भिन्न है, वहाँ के लेख उसी प्रदेश को भाषा से अत्यन्त प्रभावित होते है, ताकि वहाँ के लोग अशोक के अनुशासन को अच्छी तरह से समझ सके । उत्तरपश्चिम के लेख वहाँ की बोली के नमूने है । गिरनार का शिलालेख