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(१६) मे पाई थी। महावीर मगध के -उत्तर मगध के-निवासी थे। यह भेद उनकी भाषा के भेद समझने के लिए स्पष्ट करना आवश्यक है। ___ गणधरो से सगृहीत महावीर वाणी हमको तीन वाचना के बाद ही मिलती है। जैसे बौद्ध परम्परा मे तीन वाचनाये है, वैसे जैन परम्परा मे भी तीन वाचनाये है। मुझे तो यह एक अत्यत विलक्षण अकस्मात् मालूम होता है। दोनो की ऐतिहासिकता भी विवादास्पद है। प्रथम वाचना महावीर निर्वाण के १६० साल के बाद पाटलीपुत्र मे होती है । परपरानुसार वीर निर्वाण के १५० साल के बाद मगध-पाटलीपुत्र-मे भयानक अकाल पड़ा, और भद्रबाहु प्रभृति जैन श्रमणो को वहा से दूर चले जाना पड़ा, आत्मरक्षा के लिए । कुछ श्रमण वहा रहे भी। अकाल के बाद मालूम हुआ, ऐसे आघातो से स्मृतिसंचित उपदेश नष्टप्राय होते जायेगे, उनको व्यवस्थित करना आवश्यक है। तदनुसार पाटलीपुत्र मे जैन श्रमण सघ की परिषद मिली,
और आगम साहित्य की व्यवस्था की गई । यह हुआ करीब ई० पू० की चौथी सदी मे । इस परिषद के बाद करीब आठ सौ साल तक आगम साहित्य की कोई मरम्मत नहीं होती । दूसरी परिपद मिली मथरा मे, ई० की चौथी सदी मे । उसके दो सौ साल के बाद तिसरी परिषद मिलती है । देवर्धिगणि उसके प्रमुख थे। ई० की छट्टी शताब्दी की इस आखिरी परिपद के समय अनेक प्रतियो को मिलाकर आधारभूत पाठ निर्णय करने का प्रयत्न होता है। भिन्न-भिन्न प्रतियो को मिलाकर जब नई प्रति लिखी जाती है, तब साधारणतया, शुद्ध पाठ के बजाय अत्यत मिश्रित पाठपरपरा खड़ी होती है। जैसे महाभारत के टीकाकार नीलकठ लिखते है
बहून्समान्हृत्य विभिन्न देश्यान् कोशान्विनिश्चित्य च पाठमग्यम् । प्राचां गरूणामनसत्य वाचमारभ्यते भारतभावदीप ॥
इससे नीलकंठ के पाठ को स्वीकारने मे महाभारत के सपादक को खूब सावधानी रखनी पडती है। ___ परपरानुसार, आगम साहित्य मे महावीर का उपदेश सचित है, और उस साहित्य की भाषा को अर्धमागधी कहते है । खुद आगम साहित्य मे इस नामका उल्लेख आता है । जिस काल मे इस भाषा मे उपदेश दिया गया, और जिस काल में उसकी साहित्यिक सघटना हुई इन दोनो के बीच करीब एक हजार साल का अतर है, और यह हकी