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भी होगा, और उसके फलस्वरूप भाषापरिवर्तन भी हुआ होगा । मृल के उपदेश थे कोशल के राजकुमार और मगध के भिक्षु की भाषा मे, शिष्ट मागधी मे । जब कोई नागरिक दूसरे प्रान्त की बोली बोलता है, तब वह उस प्रान्त की शिष्ट बोली ही बोलेगा, वहां की ग्रामीण बोली से वह परिचित न होगा। दूसरी वाचना के संहनन में अन्यान्य भिक्षुगण जो कि पश्चिम से आये थे, उनका प्रभाव मूल उपदेश की इस शिष्ट मागधी पर पडा । उसके बाद यह साहित्य लिपिबद्ध होता है । अशोक के समय मे ही यह साहित्य कुछ अश मे लिपिबद्ध हो चुका था यह बात हमको भात्रु के लेख से मिलती है । किन्तु, अधिकाश चौद्ध साहित्य लिखा गया सिंहलद्वीप मे । बौद्ध साहित्य का यह धर्मदूत, उज्जैन में जिसका बचपन बीता, वह राजकुमार महेन्द्र, सम्राट अशोक का पुत्र था । बौद्ध साहित्य के विकास मे ये छोटी छोटी हकीक भाषादृष्टि से खूप सूचक है । ये हकीकते सामने रखकर अब निर्णय करना होगा कि बौद्ध धार्मिक साहित्य की पालि भाषा किसी एक भौगोलिक प्रदेश की प्रचलित भाषा हो सकती है ? विद्वानो ने पुन पुन पालि को kunst sprache 'संस्कृति को भापा' कदाचित् 'मिश्रभाषा' भी कहा है । संस्कृति की भाषा के मूल गे भी हमेशा किसी न किसी प्रदेश की बोली होती है, इसलिए पालि के तल मे किस बोली का प्रभाव है इसका विवाद किया जाता है। वस्तुत प्राचीनतम बौद्ध साहित्य भी, निर्वाण के बाद करीब चार सौ साल के बाद ही लिपिबद्ध होता है, और वह भी अनेक तरह के भिक्षुओ की बोलियो के प्रभाव के बाद | इससे यह मानना स्वाभाविक हो जाता है कि, जो पालि साहित्य हमारी समक्ष है वह पूर्व और पश्चिम की भाषाओं के मिश्रण के बाद, धार्मिक शैली मे लिखा गया है, स्थल वा काल की स्पष्ट भेट - रेखाये उसमे से मिलनी मुश्किल है ।
प्राकृत साहित्य का दूसरा ग है जैन आगम साहित्य | महावीर भी पूर्व मे पैदा हुए, और पूर्व की भाषा मे ही उन्होने धर्मोपदेश किया । वैशाली के उपनगर मे उनका जन्म, और घूमे मगध मे । जैन परंपरा के अनुसार महावीर ने अपना उपदेश उनके पट्टशिष्यो को समकाया, और वे पट्टशिष्य – गणधर - उम उपदेश के संहननकार बने । वह उपदेश मगध की प्रचलित भाषा मे था । बुद्ध भी मगध मे घूमे, किन्तु वह परदेसी थे । उनका जन्म था कोसल मे और शिक्षा कोसल