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________________ ( १२ ) ऋग्वेद एक व्यक्ति या एक काल का साहित्य नही । जब आर्य प्रजाएं भारत मे आई तब उनके पास जो परपरागत मान्यताएं थी, देवसृष्टि की जो कल्पनाएँ थी, और यज्ञयाग की जो पद्धतियों थी वह सब उनकी भाषा की तरह आर्य ईरानी काल की देन थी। ___ आर्य ईरानी निवासस्थान से भारत के उत्तरपश्चिम प्रदेशो मे आर्यों का आगमन क्रमश. आगे बढ़ती प्रजा का सूचक है । वेद मे ऐसे स्पष्ट उल्लेख नही है, जहाँ पता चले कि आर्यप्रजा अपना पुराना निवासस्थान छोडकर आगे बढ़ रही है। इससे सूचित होता है कि भारत मे आर्यों का भगीरथ कार्य था यहाँ उनके पहले जो प्रजाएँ स्थिर हो चुकी थी उनको हटाकर अपना आधिपत्य जमाना । इस काल मे होती है वेद की रचना । यह आर्य प्रजा-इन्डोयुरोपियन वोलती प्रजा-अपने अनेक परिभ्रमणों मे जहाँ गई है वहॉ विजयी होती है। उनके विजय की कु जी दो चीज मे रही है। एक है उनकी समाजव्यवस्था, दूसरी उनकी प्रगतिशीलता । उनकी समाज व्यवस्था के दो महत्त्व के अग थे देवताओं को प्रार्थना करने वाले, उनको यज्ञ से संतुष्ट करने वाले पूजारी ओर दुश्मनो से लड़ने वाले वीर योद्धा, छोटे-छोटे नृपति, वोर नेतागण । उनकी प्रगतिशीलता है, हमेशा नये वातावरण के अनुकूल होना, नये-नये तत्त्वो को अपनी सस्कृति मे अपनाना । इस शक्ति का एक उदाहरण मोहेजोदड़ो के अवशेषो को देखने पर मिलता है। इस नगर का आयुष्य करीब एक हजार साल का था, किन्तु उस काल मे उनका व्यवहार, रहन सहन की पद्धति, घर बाँधना, व्यवसाय करना, वेशभूषा आदि मे इतने दीर्घ काल तक कुछ फर्क नही होने पाया था । उस प्रजा मे गतिशीलता का अभाव था। और यह आर्य प्रजा? ये हमेशा बदलते रहे है, यह आर्य प्रजा, जो घूमतीफिरती पशुपालक प्रजा थी, जिसको घर बाँधने का, नगर बसाने का कुछ भी ज्ञान न था, जो शिल्प स्थापत्य से अनभिज्ञ थी वह भारत मे आने के पश्चात् कुछ ही काल मे, अन्य प्रजाओ से सोखकर, बड़े बड़े गणराज्य स्थापित करती है, नगर वसाती है, अनेक आर्येतर प्रजात्रो से मिलकर अपनी संस्कृति को समृद्ध बनाती है। आर्यों को समाजव्यवस्था का प्रभाव उनके साहित्य के निर्माण पर पड़ा । देवताओ को तुष्ट करने के लिए यज्ञप्रथा कम से कम आर्य
SR No.010646
Book TitlePrakrit Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages62
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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