SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [89] काव्यनिर्माणेच्छु के लिए व्याकरण ज्ञान की आवश्यकता पर बल। मालाकार के समान कवि का बुद्धिपूर्वक अर्थ को चुनने की शिक्षा देते हुए दिया गया अर्थ प्रयोग सम्बन्धी निर्देश कवि की शिक्षा का ही विषय है। आचार्य दण्डी काव्यरचना करने हेत कवि के लिए छन्दज्ञान की आवश्यकता पर बल देते हैं तथा इस प्रकार कविशिक्षा से सम्बद्ध माने जा सकते हैं। आचार्य वामन का काव्यविद्या अधिकारी निरूपण तथा प्रकीर्ण भेद निस्सन्देह कविशिक्षा के ही विषय हैं ।कवि की शिष्यावस्था एवं उनके शासनीयत्व, अशासनीयत्व का उल्लेख करके कविशिक्षा के महत्व को आचार्य वामन ने भी स्वीकार किया है। अर्थभेदों जाति, द्रव्य, क्रिया, गुण आदि के अनुरूप ही वर्णन का, कवि प्रसिद्धि के अनुकूल ही वर्णन का निर्देश करने के कारण रूद्रट का ग्रन्थ भी कविशिक्षा से ही सम्बद्ध माना जा सकता है। आचार्य आनन्दवर्धन के ध्वन्यालोक से भी ध्वनि तथा रस प्रयोग सम्बन्धी निर्देश कवियों को प्राप्त हुए, सुकवियों के मुख्य व्यापारविषय रसादि हैं तथा इन कवियों को रसादि के निबन्धन में ही प्रमादरहित रहने का निर्देश कवियों को ध्वन्यालोक से ही प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक अभ्यासी कवि की स्थिति आचार्य आनन्दवर्धन को भी मान्य है।4 इसलिए कवि की शिष्यावस्था तथा इसके जीवन म शिक्षा का महत्व अप्रत्यक्ष रूप से आनन्दवर्धन द्वारा भी स्वीकृत माना जा सकता है। ध्वन्यालोक को 1. मालाकारो रचयति यथा साधु विज्ञाय मालाम् योज्यं काव्येष्वहितधिया तद्वदेवाभिधानम् (1/59)। काव्यालङ्कार (भामह) 2. अरोचकिनः सतृणाभ्यवहारिणश्च कवयः (1/2/1) पूर्वे शिष्याः विवेकित्वात् (1/2/2) नेतरे तद्विपर्ययात् (1/2/3) काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति (वामन) 3 अर्थ पुनरभिधावान् प्रवर्तते यस्य वाचकः शब्दः। तस्य भवन्ति द्रव्यं गुणः क्रिया जातिरिति भेदाः । 1। सर्व: स्वं स्वं रूपं धत्तेऽर्थों दोशकालनियमं च तं च न खलु बनीयानिष्कारणमन्यथातिरसात् ।7। सुकविपरम्परया चिरमविगीततयान्यथा निबद्धं यत् वस्तु तदन्यादृशमपि बनीयात्तत्प्रसिद्धयैव ।8। काव्यालङ्कार (रुद्रट) (सप्तम अध्याय) 4 मुख्या: व्यापारविषयाः सुकवीनां रसादयः तेषां निबन्धने भाव्यं तैः सदैवाप्रमादिभि: नीरसस्तु प्रबन्धो यः सोऽपशब्दो महान् कवेः पृष्ठ - 295 (तृतीय उद्योत) (ध्वन्यालोक) तदेवमिदानीन्तनकविकाव्यनयोपदेशे क्रियमाणे प्राथमिकानामभ्यासार्थिनां यदि परं चित्रेण व्यवहारः प्रासपरिणतीनान्तु ध्वनिरेव काव्यमिति स्थितमेतत्। पृष्ठ - 423 (ध्वन्यालोक - तृतीय उद्योत)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy