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________________ [85] संस्कारक ही हैं1-स्वयं वे काव्य निर्माण के साक्षात कारण नहीं हैं। हेमचन्द्र ने प्रतिभा के अभाव में व्युत्पत्ति तथा अभ्यास की व्यर्थता स्वीकार की है। 'वाग्भटालङ्कार' के रचयिता वाग्भट काव्य का एकमात्र कारण प्रतिभा को ही मानते हैं किन्तु उन्होंने अभ्यास को काव्य की शीघ्र उत्पत्ति में सहायक माना है ।2 पण्डितराज जगन्नाथ के अनुसार काव्य का एकमात्र कारण प्रतिभा है ३ व्युत्पत्ति और अभ्यास इस प्रतिभा के ही कारण रूप हैं-वे स्वयं काव्य के कारण नहीं हैं। काव्य की कारणता के विषय में इस विचार से भिन्न विचार रखने वाले आचार्य हैं-दण्डी, रूद्रट, मम्मट और विद्याधर। इन आचार्यों ने प्रतिभा, व्युत्पत्ति तथा अभ्यास को सम्मिलित रूप से ही काव्य का कारण स्वीकार किया है-पृथक्-पृथक् रूप में नहीं। यद्यपि इस विषय में आचार्य दण्डी का कुछ असामान्य विचार है। तीनों हेतुओं की सम्मिलित कारणता स्वीकार करके भी आचार्य दण्डी यदा कदा प्रतिभा के अभाव में भी व्युत्पत्ति और अभ्यास का महत्त्व स्वीकार करते हैं। उनकी धारणा है कि काव्यरचना का निरन्तरप्रयास काव्यनिर्माण के लिए कवि को कुछ न कुछ सामर्थ्य अवश्य प्रदान करता प्रतिभास्य हेतुः । 4। प्रतिभा नवनवोल्लेखशालिनी प्रज्ञा। अस्य काव्यस्य इदं प्रधानं कारणम्। व्युत्पत्यभ्यासौ तु प्रतिभाया एव संस्कारकाविति वक्ष्यते। (काव्यानुशासन- हेमचन्द्र) (प्रथम अध्याय) 2 प्रतिभा कारणं तस्य व्युत्पत्तिस्तु विभूषणम् भृशोत्पत्तिकृदभ्यास इत्याद्यकविसङ्कथा॥ 3 ॥ अभ्यासस्तु पुनः पुनस्तदासेवनलक्षणस्तस्य काव्यस्य भृशमुत्पत्तिं करोति भृशोत्पत्तिकृद्भवति। अभ्यसने हि सतः स्थैर्यादेर्योगान्निर्विलम्बकाव्योत्पत्तेः वाग्भटालङ्कार (वाग्भट) (प्रथम परिच्छेद) 3 तस्य च कारणं कविगता केवला प्रतिभा सा च काव्यघटनानुकूलशब्दार्थोपस्थितिः। (पृष्ठ 25) रसगङ्गाधर (पण्डितराज जगन्नाथ)(प्रथमानन) 4 नैसर्गिकी च प्रतिभाश्रुतञ्च बहुनिर्मलम्। अमन्दश्चाभियोगोऽस्याः कारणं काव्यसम्पदः (1/103) न विद्यते यद्यपि पूर्ववासना गुणानुबन्धि प्रतिभानमद्भुतम् श्रुतेन यत्नेन च वागुपासिता ध्रुवं करोत्येव कमप्यनुग्रहम् (1/104) तदस्तंन्ट्रैरनिशं सरस्वती श्रमादुपास्या खलु कीर्तिमीप्सुभिः । कशे कवित्वेऽपि जनाः कृतश्रमा विदग्धगोष्ठीषु विहर्तुमीशते (1/105) काव्यादर्श (दण्डी)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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