________________
[83]
कवि शिक्षा एवम् अभ्यास-काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों के इतिहास में भामह, दण्डी, वामन, रूद्रट आनन्दवर्धन आदि राजशेखर से पूर्व आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में काव्य के स्वरूप, काव्यप्रयोजन, काव्यहेतु, गुण, दोष अलंकार, रीति, वृत्ति, प्रवृत्ति, रस, ध्वनि काव्यभेद तथा काव्य में शब्दों, अर्थो के प्रयोग आदि विषयों का विवेचन किया है। इन विषयों के प्रयोग के विवेचन को काव्यशास्त्र का सैद्धान्तिक पक्ष माना जा सकता है, किन्तु काव्यशास्त्र के इस सैद्धान्तिक पक्ष के साथ-साथ काव्यशास्त्र का व्यावहारिक पक्ष 'कवि शिक्षा' भी विभिन्न काव्य शास्त्रीय ग्रन्थों में आचायों के विवेचन का विषय बना। 'कवि शिक्षा' प्रारम्भिक कवियों के अनुशासन तथा पथप्रदर्शन से सम्बद्ध विषय है।
काव्य निर्माण के इच्छुक जनों के सम्मुख काव्य रचना शास्त्र के प्रस्तुतकर्ता सर्वप्रथम आचार्य राजशेखर ही हैं। उन्होंने काव्यशास्त्रीय जगत् में कविशिक्षा सम्प्रदाय को जन्म दिया। काव्य निर्माणेच्छु के लिए शिक्षा की आवश्यकता पर तो आचार्य राजशेखर के पहले भी ध्यान आकृष्ट कराया गया था किन्तु 'कविशिक्षा' का मौलिक ग्रन्थ तो काव्यमीमांसा को ही स्वीकार किया जा सकता है। कविशिक्षा सम्प्रदाय का लक्ष्य कवियों का मार्गदर्शन करना ही है। अब तक की सभी विचारधाराओं-रस,रीति, ध्वनि एवम् अलङ्कार से भिन्न पूर्णतः नवीन विचारधारा 'कविशिक्षा सम्प्रदाय' का प्रवर्तक ग्रन्थ काव्यमीमांसा अलङ्कारशास्त्र विषयक ज्ञान देने में बहुत समर्थ भले ही न हो, किन्तु कवियों के लिए महान् उपयोगी है। काव्यशास्त्र के किसी भी एक ही सिद्धान्त का विवेचन इस ग्रन्थ का लक्ष्य नहीं था।
आचार्य राजशेखर का विचार है कि काव्य क्रिया में प्रवृत्त होने के पहले कवि को विभिन्न
विद्याओं, उपविद्याओं में निष्णात होना चाहिए। अत: कवि बनने के इच्छुक व्यक्ति को शिक्षित करने के
लिए रचित 'काव्यमीमांसा' ग्रन्थ कवि के लिए उपकारक समस्त विषयों का विवेचक है। इसी कारण
आचार्य राजशेखर इस ग्रन्थ को काव्यविद्या के प्रौढ़ ज्ञान का कारण कहते हैं। यह वह मीमांसा है जिसमें
वाणी के अंश-शब्द और अर्थ का सूक्ष्म विवेचन है। शब्द और अर्थ के साहित्य से ही श्रेष्ठ
1. इयं नः काव्यमीमांसा काव्यव्युत्पत्तिकारणम्। इयं सा काव्यमीमांसा मीमांस्यो यत्र वाग्लवः॥
काव्यमीमांसा-(प्रथम अध्याय)