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कौशला को व्युत्पत्ति का स्वरूप मानकर औचित्य तथा विवेकशीलता के निकट ही व्युत्पत्ति का स्थान निश्चित करते प्रतीत होते हैं।
आचार्य राजशेखर के परवर्ती आचार्य क्षेमेन्द्र ने तो औचित्य को ही रससिद्ध काव्य का जीवन माना।2 विभिन्न काव्यशास्त्रियों ने कवियों को अनौचित्य से दूर रखने तथा औचित्य में प्रवृत्त करने के लिए ही दोषप्रकरण का निबन्धन किया। अग्निपुराण में औचित्य अलङ्कारों के 6 भेदों में से एक है 3 वस्तु के अनुकूल रीति, वृति के अनुकूल रस, उर्जस्वि और मृदु के संदर्भ से औचित्य उत्पन्न होता है।
आचार्य राजशेखर के परवर्ती हेमचन्द्र ने लोक,शास्त्र तथा काव्य में निपुणता को, विद्याधर ने बहुशास्त्रदर्शिता को व्युत्पत्ति के रूप में स्वीकार किया। अनेक शास्त्रों में परम्परा से प्राप्त असाधारण प्रतिपत्ति वाग्भट की व्युत्पत्ति है 4
काव्यार्थों को किसी सीमा में आबद्ध करना सम्भव नहीं है किन्तु सभी काव्यशास्त्री काव्य में सरस अर्थ के निबन्धन का ही औचित्य स्वीकार करते हैं। आचार्य राजशेखर काव्य की सरसता नीरसता का सम्बन्ध कवि के वचनों से मानते हैं, काव्यार्थों से नहीं 5 यदि कवि प्रतिभा संपन्न है, उचित
1. 'समस्तवस्तु पौर्वापर्यकौशलं व्युत्पत्तिः
अभिनव भारती (अभिनव गुप्त) 2 औचित्यस्य चमत्कारकारिणश्चारूचर्वणे रसजीवितभूतस्य विचारं कुरूतेऽधुना ।3।। अलङ्कारास्त्वलङ्कारा: गुणा एव गुणाः सदा औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम् ।5।
(औचित्यविचारचर्चा (क्षेमेन्द्र) (प्रथम परिच्छेद) 3 शब्दार्थयोरलङ्कारो द्वावलङ्करुते समम् । 1।
प्रशस्ति: कान्तिरौचित्यं संक्षेपो यावदर्थता अभिव्यक्तिरिति व्यक्तं षड्भेदास्तस्य जाग्रति । 2। यथावस्तु तथा रीतिर्यथा वृत्तिस्तथा रस: उर्जस्विमृदुसंदर्भादौचित्यमुपजायते ।।।
(अग्निपुराण का काव्यशास्त्रीय भाग) (नवम अध्याय) 4 (क) लोक-शास्त्रकाव्येषु निपुणता व्युत्पत्तिः । 8। काव्यानुशासन (हेमचन्द्र)
(प्रथम अध्याय) (ख) बहुशास्त्रदर्शिता व्युत्पत्तिः। सर्वपथीनाः खलु कवयो भवन्ति। सर्वपथीनाः सर्ववेदिनः इत्यर्थः।
एकावली (विद्याधर) (प्रथमोन्मेष) (ग) शब्दधर्मार्थकामादिशास्त्रेष्वाम्नायपूर्विका प्रतिपत्तिरसामान्या व्युत्पत्तिरभिधीयते ।।।
वाग्भटालङ्कार (वाग्भट) प्रथम परिच्छेद 5 अस्ति चानुभूयमानो रसस्यानुगुणो विगुणश्चार्थः, काव्ये तु कविवचनानि रसयन्ति विरसयन्ति च नार्थाः,
(काव्यमीमांसा - नवम अध्याय) अस्तु वस्तुषु मा वा भूत्काविवाचि रसः स्थितः
(काव्यमीमांसा - नवम अध्याय)