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________________ [80] अनुचित के विवेक से युक्त है तो वह किसी भी अर्थ को उसके पूर्ण सरस स्वरूप में ही प्रस्तुत करता है। काव्यहेतु व्युत्पति के दो क्षेत्र हैं। (1) काव्यसंघटना से सम्बद्ध व्युत्पत्ति (2) काव्यार्थ की प्राप्ति से सम्बद्ध व्युत्पत्ति। काव्यमीमांसा में काव्यार्थ की प्राप्ति से सम्बद्ध व्युत्पत्ति का भी विस्तृत विवेचन है। जो कवि जितने अधिक विषयों का ज्ञाता होगा उसको उतने ही अधिक काव्यार्थ प्राप्त होंगे। इसके अतिरिक्त काव्य में शास्त्रीय अर्थों का भी निवेश होने के कारण काव्य में शास्त्र ज्ञान अपेक्षित है। विभिन्न शास्त्रों तथा वेद, पुराण इतिहासादि के परिचय की कवि के लिए अपेक्षा से सम्बद्ध विवेचन आचार्य राजशेखर की काव्यमीमांसा के अर्थोत्पत्तिविषयक अध्याय में मिलता है। इन विभिन्न ग्रन्थों का अध्ययन कवि को अपने काव्य के लिए विभिन्न प्रकार के अर्थ प्रदान करता है। इस प्रकार कवि को अर्थ प्राप्ति उसके ज्ञानक्षेत्र के विस्तार से सम्बद्ध है, विभिन्न प्रकार के अर्थों का ज्ञाता कवि अर्थ की दृष्टि से दरिद्र नहीं रहता।1 कवि को काव्यार्थप्राप्ति के स्त्रोत श्रुति, स्मृति, इतिहास, पुराण, प्रमाणविद्या, समयविद्या, राजसिद्धान्तत्रयी, लोक, विरचना तथा प्रकीर्णक सर्वमान्य हैं। लौकिक अर्थ के दो प्रकार प्राकृत (स्वाभाविक) तथा व्युत्पन्न (कतिपय जनजन्न तथा सम स्तज नजन्य) हैं। कविमनीषा से निर्मित कथा अथवा अर्थ की विरचना संज्ञा है। इन सर्वमान्य काव्यार्थस्त्रोतों के अतिरिक्त आचार्य राजशेखर ने चार नवीन काव्यार्थस्त्रोत भी प्रस्तुत किए हैं 1 इदं कविभ्यः कथितमर्थोत्पत्ति परायणम् इह प्रगल्भमानस्य न जात्वर्थकदर्थना। (काव्यमीमांसा-अष्टम अध्याय) इत्थङ्कारं घनैरथैव्युत्पन्नमनसः कवे: दुर्गमेऽपि भवेन्मार्गे कुण्ठिता न सरस्वती (काव्यमीमांसा - नवम अध्याय) 2 श्रुतिः, स्मृतिः, इतिहासः, पुराणम्, प्रमाणविद्या, समयविद्या, राजसिद्धान्तत्रयी, लोको विरचना, प्रकीर्णकं च काव्यार्थानां द्वादश योनयः, इति आचार्या: उचितसंयोगेन, योक्तृसंयोगेन, उत्पाद्यसंयोगेन, संयोगविकारेण च मह ................षोडश, इति यायावरीयः। लौकिकस्तु द्विधा प्राकृतो व्युत्पन्नश्च द्वितीयो द्विधा समस्तजनजन्यः कतिपयजनजन्यश्च । तयोः प्रथमोऽनेकधा देशाना .............बहुत्वात्। कविमनीषानिर्मितं कथातन्त्रमर्थमात्रं वा विरचना (काव्यमीमांसा-अष्टम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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