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________________ [48] प्रतीक है। अतः यहाँ भी इसका सम्बन्ध वाचिक व्यापार से ही प्रतीत होता है और गौडी रीति से इसका सम्बन्ध भी इसी तथ्य को स्पष्ट करता है। मानसिक व्यपार से सम्बन्ध रखने वाली सात्वती वृत्ति सत्वगुण प्रधान, हर्षपूर्ण तथा अभिनय की प्रधानता से युक्त है। वीर, अद्भुत तथा शम रसों से सम्बन्ध रखने वाली इस नृत्यशैली में पुरुषों की बहुलता होती थी, यद्यपि इसमें स्त्रियों की भी अत्यल्प संख्या विद्यमान रहती थी। इसका सात्वती नामकरण नर्तकों के द्वारा सत्वप्रधान भावों को प्रदर्शित करने के कारण हुआ 3 सात्वतों (वैष्णवों) की नृत्यपद्धति होने के कारण भी इसे सात्वती कहा गया। काव्यमीमांसा में पाञ्चाल देश में साहित्यविद्यावधू द्वारा प्रस्तुत किया गया नृत्य, गान, वाद्य आदि सात्वती वृत्ति के रूप में वर्णित है । यहाँ भी इस वृत्ति में हर्ष की तथा सात्विक भावों की अधिकता है क्योंकि साहित्यविद्यावधू के इन व्यापारों से काव्यपुरुष के किञ्चित् आकर्षण का निर्देश है। इसी कारण यह वृत्ति भी किञ्चित् कोमल भावनाओं की ही द्योतक है और इसी प्रकार की भावनाओं का प्रदर्शन करने वाली पाञ्चाली रीति से इसका सम्बन्ध भी है। कायिक व्यापार से सम्बन्ध रखने वाली आरभटी वृत्ति का प्रचलन नाट्य शास्त्र के अनुसार पहले दैत्य, दानव तथा राक्षस जातियों में ही था। माया, इन्द्रजाल, संग्रम, क्रोध, उद्भ्रान्ति, बन्ध, वध आदि इसके वैशिष्ट्य हैं। संवाद से लेकर नृत्य तक सर्वत्र औद्धत्य युक्त इस वृत्ति में भी पुरुषनर्तकों की बहुलता थी, स्त्रियाँ अत्यल्प संख्या में उपस्थित रहती थीं। आचार्य राजशेखर सात्वती वृत्ति को ही कुटिल गति वाली हो जाने पर आरभटी कहते हैं । 4 इस वृत्ति के नामकरण का आरभट जाति से भी 1 या सात्वतेनेह गुणेन युक्ता, न्यायेन वृत्तेन समन्विता च हर्षोत्कटा संहृतशोकभावा सा सात्वती नाम भवेतु वृत्तिः । 41 ( नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय) (नाटयशास्त्र - विंश अध्याय) सात्वती चापि विज्ञेया वीराद्भुतशमाश्रया 731 मनोव्यापाररूपा सात्विकी सात्वती। सदिति प्रख्यारूपं संवेदनम्। तद् यन्त्रास्ति तत् सत्व मनः । तस्येयमिति । (अभिनवभारती अभिनवगुप्त ) (नाट्यशास्त्र विंश अध्याय (41) की वृत्ति) काव्यमीमांसा - तृतीय अध्याय 2 4. 'आविद्धगतिमत्वात्सा चारभटी'
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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