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सम्बन्ध है। यह वृत्ति रौद्र एवम् भयानक रसों में प्रयुक्त होती है,1 आचार्य विश्वनाथ इसको वीभत्स रस में प्रयुक्त होने वाली भी स्वीकार करते हैं। सात्वती का ही अन्य रूप होने के कारण इसका प्रचलन भी सात्वती के ही समान पाञ्चाल देश में रहा होगा। आचार्य अभिनवगुप्त इस वृत्ति को भटों की कार्यवृत्ति के रूप में कायिक व्यापार से सम्बद्ध मानते हैं । जिस प्रकार केश देह की शोभा के लिए उपयोगी हैं, उसी प्रकार वाचिक, मानसिक और शारीरिक तीनों प्रकार के व्यापारों में सौन्दर्योपयोगी व्यापार कैशिकी वृत्ति है 3 श्रृंगार और हास्य रस में प्रयुक्त, सुन्दर विलासों से युक्त इस वृत्ति का वैशिष्ट्य है कोमल और आकर्षक नेपथ्य विधान, स्त्री पात्रों की बहुलता, अनेक नृत्य तथा गीतों का आयोजन, कामचेष्टाओं का उद्दीपन तथा विस्तार में कैशिकी वृत्ति सभी रसों का प्राण है, किन्तु श्रृंगाररस का तो इसके बिना नाम भी नहीं लिया जा सकता। भारती, सात्वती और आरभटी का ही पहले प्रयोग होता था, किन्तु ब्रह्मा के आग्रह से कैशिकी वृत्ति का भी प्रयोग आरम्भ हुआ। इस वृत्ति का केवल नाट्यपुरुषों के द्वारा प्रयोग न हो
1. आरभटप्रायगुणा तथैव बहुकपटवञ्चनोपेता दम्भान्तवचनवती त्वारभटी नाम विज्ञेया । 64।
नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय रौद्रे भयानके चैव विज्ञेयारभटी बुधैः । ------- ।।74 ।
(नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय) 'पुरुषैर्बहुभिर्युक्तमल्पस्त्रीकं तथैव च सात्वत्यारभटीप्रायं नाट्यमाविद्धमेव तत् । 55।
(नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय) 'एषां प्रयोगः कर्तव्यो दैत्यदानवराक्षसैः। उद्धता च ये पुरुषाः शौर्यवीर्यबलान्विताः' । 57।
(नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय) 2 इग्रति इति अराः भटा: सोत्साहा अनलसाः। तेषामियं आरभटी कार्यवृत्तिः। अभिनवभारती (अभिनवगुप्त)
(नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय (41) की वृत्ति) 3 केशाः किञ्चिदप्यर्थक्रियाजातमकुर्वन्तो देहशोभोपयोगिनः। तद्वत् सौन्दर्योपयोगी व्यापार: कैशिकी वृत्तिः।----- सर्वत्रैव कैशिकीप्राणा:------------शृङ्गाररसस्य तु नामग्रहणमपि न तया विना शक्यम्।
अभिनवभारती (अभिनवगुप्त)
[नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय (41) की वृत्ति ] 4. या श्लक्ष्णनैपथ्यविशेषचित्रा स्त्रीसंयुता या बहुनृत्तगीता। कामोपभोगप्रभवोपचारा तां कैशिकी वृत्तिमुदाहरन्ति । 53 ।
(नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय) हास्यश्रृङ्गारबहुला कैशिकी परिचक्षिता-------------173।
(नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय)