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नृत्य में शरीर तथा मन दोनों का ही सुन्दर तालमेल सहित प्रयोग होता है। इस दृष्टि से भारती वृत्ति नृत्य शैली की प्रारम्भिक अवस्था है तथा नृत्य का परिपूर्ण विकसित सौन्दर्यमय रूप कैशिकी वृत्ति में परिलक्षित होता है।
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के समाना काव्यमीमांसा में भी भारती, सात्वती, आरभटी और
कैशिकी चार वृत्तियों का उल्लेख है।
नाट्य शास्त्र में वृत्तियों की उत्पत्ति वेदों से मानी गई है। भारती वृत्ति का मूल स्त्रोत ऋग्वेद है तो सात्वती का यजुर्वेद । कैशिकी का सामवेद से तथा आरभटी का अथर्ववेद से उद्भव हुआ 2
नायकादि का व्यापार वाचिक मानसिक तथा शारीरिक तीन प्रकार का होता है। नाट्यकला की उत्पत्ति के समय भरतों अर्थात् अभिनेताओं ने जिस नृत्य पद्धति का आश्रय लिया वह उन्हीं के नाम से विख्यात होकर भारती वृत्ति कहलाने लगी। वाचिक व्यापार से सम्बद्ध यह वृत्ति पुरुष पात्रों से युक्त, संवाद प्रधान थी, इसमें संस्कृत का प्रयोग होता था, वीभत्स एवम् करुण इसके प्रमुख रस थे 3 बाद में आचार्य विश्वनाथ ने इस वृत्ति का सर्वत्र प्रयोग स्वीकार किया। काव्यमीमांसा के काव्यपुरुषाख्यान में पूर्वदेश में साहित्यविद्यावधू द्वारा काव्यपुरुष के आकर्षण हेतु प्रस्तुत नृत्यगान आदि ही भारती वृत्ति है। पूर्वदेश में प्रचलित इस वृत्ति का स्वरूप साहित्यविद्यावधू के प्रति काव्यपुरुष के आकर्षण की न्यूनता का
1. 'भारती सात्वती चैव कैशिक्यारभटी तथा चतस्त्रो वृत्तयो ह्येता यासु नाट्यं प्रतिष्ठितम्'
नाट्यशास्त्र षष्ठ अध्याय | 241 2 ऋग्वेदाद् भारती क्षिप्ता यजुर्वेदाच्च सात्वती। कैशिकी सामवेदाच्च शेषा चाथर्वणादपि । 25।
(नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय) 3. या वाक्प्रधाना पुरुषप्रयोज्या स्त्रीवर्जिता, संस्कृतपाठ्ययुक्ता। स्वनामधेयैर्भरतैः प्रयुक्ता सा भारती नाम
भवेत्तु वृत्तिः। 261 वीभत्से करुणे चैव भारती संप्रकीर्तिता । 741
नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय 'भारती वाग्वृत्तिः'
अभिनव भारती (अभिनव गुप्त ) [नाट्यशास्त्र - विंश अध्याय (41) की वृत्ति |