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________________ [36] आचार्य राजशेखर के अनुसार गुण, अलङ्कार, रीति, उक्ति से युक्त शब्दों, अर्थों का जो गुम्फन क्रम सहदयों, श्रोताओं तथा भावकों को आकर्षक प्रतीत होता है, वह 'वाक्यपाक' है। सहृदयहृदय की आह्लादनक्षमता ही काव्यपाक का रहस्य है। काव्य के विभिन्न पाकों में केवल वही पाक स्वीकार्य है, जिसका पर्यवसान सरसता में होता है। रस तो काव्य में सर्वत्र निहित है। आचार्य राजशेखर के परवर्ती आचार्य विश्वनाथ आदि तो रसयुक्त वाक्य को ही काव्य कहते हैं । गुणयुक्त अलकृत वाक्य भी अलौकिक चमत्कारजनक होने से रस प्रतीति कराते हैं और शब्दार्थ का विशिष्ट साहित्य भी लोकोत्तरचमत्कारजनक होने से रस प्रतीति का ही कारण बनता है। इस प्रकार सभी काव्य परिभाषाएँ प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से रस को ही काव्य का प्रमुख तत्व स्वीकार करती हैं। आचार्य राजशेखर कविशिक्षक आचार्य के रूप में काव्यशास्त्रीय जगत् में प्रतिष्ठित हुए। अत: उनके काव्यपुरुषाख्यान, काव्य एवम् साहित्य के लक्षण तथा काव्यपाक यह सिद्ध करते हैं कि वे प्रारम्भिक कवि को पूर्णत: सरस काव्य की रचना करने में समर्थ पूर्ण परिपक्व, श्रेष्ठ कवि के रूप में ही प्रतिष्ठित करके उसे काव्यशिक्षा के परमलक्ष्य तक पहुँचा देना चाहते थे और वे अपने इस लक्ष्य में सफल भी हुए। (ग) रीति, वृत्ति एवम् प्रवृत्ति : रीति : आचार्य राजशेखर का काव्यपुरुषाख्यान तात्कालिक काव्यरचना शैलियों का देशों के क्रम से विवरण प्रस्तुत करता है। तत्कालीन काव्यविद्यास्नातकों के लिए यह विवरण परम उपादेय था। काव्यपुरुष की साहित्यविद्यावधू के साथ यात्रा के प्रसंग में आचार्य ने भारत का चार भागों में विभाजन 1 'गुणालङ्काररीत्युक्तिशब्दार्थग्रथनक्रमः स्वदते सुधियां येन वाक्यपाकः स मां प्रति' काव्यमीमांसा - (पञ्चम अध्याय) 2 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' (पृष्ठ - 19) साहित्यदर्पण - प्रथम परिच्छेद (विश्वनाथ)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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