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________________ [29] वचन का अभिप्राय एक है तो अनेक क्रियापदों की उपस्थिति होने पर भी एक सम्पूर्ण विचार को व्यक्त करने वाला पद संदर्भ एक ही वाक्य होगा। बाद में आकांक्षा, योग्यता और आसक्ति से युक्त पदों के समूह को वाक्य कहने वाले आचार्य विश्वनाथ तथा एकार्थपर पदों के समूह को वाक्य कहने वाले आचार्य भोजराज ने आचार्य राजशेखर से समानता रखने वाली वाक्य-परिभाषाएँ प्रस्तुत की। आचार्य राजशेखर द्वारा वर्णित काव्यपुरुषाख्यान से परिलक्षित होता है कि साहित्य की चरम अवस्था में पहुँचने वाला काव्य ही श्रेष्ठता की कसौटी पर खरा उतरता है। इस दृष्टि से 'साहित्य' का स्पष्टीकरण आवश्यक है। 'साहित्य' शब्द 'सहित' से व्युत्पन्न है। सहित शब्द में 'स' पूर्वसर्ग 'समं' का वाचक है और 'हित' 'धा' धातु (धारण करना, रखना) का भूतकालिक कृदन्त रूप है। सहित का अर्थ है समान रूप से स्थापित, प्रतिष्ठित अथवा सन्तुलित शब्द और अर्थ । महिमभट्ट का 'साहित्य' भी शब्द अर्थ के संतुलन को व्यक्त करता है। वाङ्मय के शास्त्र तथा काव्य यह दो भेद हैं और शब्द तथा अर्थ का साहित्य सर्वत्र अभीष्ट है। वाच्य तथा वाचक का अविनाभाव सम्बन्ध होने से उनका कहीं भी साहित्यविरह नहीं होता। एक के उपस्थित होने पर दूसरा स्वयम् उपस्थित हो जाता है। इस प्रकार शब्द और अर्थ का व्याकरणिक संयोग ही सामान्य साहित्य है। किन्तु काव्य में जब शब्दार्थ साहित्य की आकाक्षा होती है तो उसमें वैशिष्टय निहित होता है। काव्य में शास्त्रादि के समान केवल अर्थप्रतीति कराने वाला शब्द प्रयुक्त नहीं होता । स्वाभाविक शब्दार्थ सम्बन्ध को जब कवि अपने प्रतिभाव्यापार द्वारा 1. 'एकाकारतया कारकग्रामस्यैकार्थतया च वचोवृत्तरेकमेवेदं वाक्यम्' काव्यमीमांसा - (षष्ठ अध्याय) 2 'वाक्यं स्याद्योग्यताकाङ्क्षासक्तियुक्तः पदोच्चयः' साहित्यदर्पण (विश्वनाथ) द्वितीय परिच्छेद, पृष्ठ-24 3. एकार्थपर: पदसमूहो वाक्यम्' - तृतीय प्रकाश, पृष्ठ-101, शृंगारप्रकाश-भोजराज 4. 'साहित्यं तुल्यकक्षत्वेनान्यूनातिरिक्तत्वम्' व्यक्ति विवेक, द्वितीय विमर्श, पृष्ठ 311 5. विशिष्टमेवेह साहित्यमभिप्रेतम् कीदृशम्-वक्रताविचित्रगुणालङ्कारसम्पदाम् परस्परस्पर्धाधिरोहः। पृष्ठ-25 वक्रोक्तिजीवित (कुन्तक) प्रथम उन्मेष 6. न च काव्ये शास्त्रादिवदर्थप्रतीत्यर्थ शब्दमात्रम् प्रयुज्यते, सहितयोः शब्दार्थयोस्तत्र प्रयोगात्।। व्यक्तिविवेक (महिमभट्ट) द्वितीय विमर्श, पृष्ठ - 3।।
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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