SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [322] आचार्य राजशेखर का विभिन्न कल्पनाओं के अलौकिक स्फुरण से युक्त, सहृदयों को रस से ओतप्रोत करने वाला सर्वश्रेष्ठ कवि ही परवर्तीकाल में आचार्य मम्मट का लोकोत्तरवर्णनानिपु" कवि बना। महिमभट्ट, विश्वेश्वर आदि आचार्यों ने इसी अनुकरण पर रसाविनाभूत अलौकिक विशिष्ट गुम्फ को कविकर्म स्वीकार किया। आचार्य राजशेखर के श्रेष्ठ कवि की सर्वगुणसम्पन्नता उनकी 'काव्यमीमांसा' द्वारा प्रकट होती है। परवर्ती आचार्य विनयचन्द्र ने भी कवि की सर्वगुणसम्पन्नता को स्वीकार किया तथा उसके काव्यविद्या से सम्बन्ध विषयों में सर्वज्ञ होने का उल्लेख अपने 'काव्यशिक्षा' नामक ग्रन्थ में किया। कवि के व्यक्तिगत जीवन से उसका काव्यनिर्माण अवश्य प्रभावित होता है। इसी कारण कवि के अन्तर्मन तथा बाह्य परिवेश को पूर्णतः सुन्दर बनाने के लिए विभिन्न कविसम्बद्ध विषय 'काव्यमीमांसा' में वर्णित हैं। स्वभाव को सात्विक बनाने से सम्बद्ध अनेक निर्देश इसी प्रकार के हैं। आचार्य राजशेखर की यह स्वीकृति कि-'कवि के स्वभाव से उसका काव्य अवश्य प्रभावित होता है' आचार्य कुन्तक के विविध मार्गों को उनका आधार प्रदान करती है। यह विविध मार्ग कविस्वभाव पर आधारित सुकुमार, विचित्र तथा मध्यम मार्ग हैं। आचार्य क्षेमेन्द्र ने भी स्वभाव की सात्विकता को बौद्धिक विकास के आन्तरिक सहायक साधन के रूप में स्वीकार किया। कवियों के काव्यरचनाकाल के आधार पर प्रस्तुत कविविभाग, कवि की दिनचर्या में काव्यरचनासम्बन्धी कार्यनिर्धारण तथा कवि के स्वास्थ्य की उत्तमता हेतु प्रस्तुत निर्देश 'काव्यमीमांसा' में ही सर्वप्रथम परिलक्षित हुए। कवि के लिए दैनिक कार्यों से सम्बद्ध तथा उत्तम स्वास्थ्य हेतु निर्देश परवर्ती आचार्य क्षेमेन्द्र द्वारा 'कविकण्ठाभरण' में प्रस्तुत किए गए। भावक तथा उसकी प्रतिभा का महत्व काव्यजगत् में सर्वमान्य तो है, किन्तु काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ में इन दोनों को विशिष्ट स्थान आचार्य राजशेखर ने प्रदान किया। 'काव्यमीमांसा' में अशास्त्रीय, अलौकिक, परम्परायात अर्थ के रूप में उल्लिखित कविसमय का प्रभाव भी कुछ परवर्ती आचार्यो के ग्रन्थों में परिलक्षित हुआ। आचार्य मम्मट, वाग्भट आदि ने कविसमय सिद्ध अर्थ से विरुद्ध वर्णन को दोषरूप में स्वीकार किया तो कविसमयानुकूल वर्णन आचार्य विश्वनाथ का ख्यातविरुद्धता गुण बना। आचार्य हेमचन्द्र, देवेश्वर, अमरसिंह, अरिसिंह तथा विनयचन्द्र
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy