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________________ अष्टम अध्याय उपसंहार काव्यशास्त्र के सैद्धान्तिक पक्ष से अलग हटकर अभ्यासी कवि को कविता बनाने की कला सिखाने वाले काव्यशास्त्र के व्यावहारिक पक्ष की प्रस्तुति सर्वप्रथम आचार्य राजशेखर द्वारा 'काव्यमीमांसा' में की गई। इसी कारण अभ्यासी कवियों के परम ज्ञानाधार, अनुकरणीय ग्रन्थ के विविध विषयों के अनुपम स्वरूप से अधिकांश परवर्ती आचार्य प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके कुछ परवर्ती आचायों पर यह प्रभाव आंशिक ही रहा, किन्तु कुछ परवर्ती काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ पूर्णतः काव्यमीमांसा पर आधारित रहे। ऐसे अनेक ग्रन्थों को काव्यशास्त्र के इतिहास के अन्तर्गत केवल अपने नामाङ्कन से ही संतोष करना पड़ा, विषयों की मौलिकता के संदर्भ में उनका कोई विशिष्ट योगदान न हो सका। आचार्य राजशेखर द्वारा स्वीकृत शब्द, अर्थ के यथावत् सहभाव रूप साहित्य का परिपूर्ण स्वरूप परवर्ती आचार्य कुन्तक की परिभाषा में स्पष्ट हुआ आचार्य राजशेखर द्वारा स्वीकृत उत्कृष्ट काव्य के सभी वैशिष्ट्य मार्गों की अनुकूलता से सुन्दर, गुणों की उत्कृष्टता से युक्त, अलङ्कारविन्यास तथा वृत्ति के औचित्य से मनोहारी रसपरिपोष सहित शब्दार्थ सम्बन्ध ही साहित्य रूप में आचार्य कुन्तक द्वारा स्वीकृत हुए । यही आचार्य राजशेखर का चरम विकसित काव्य है। काव्य हेतुओं के संदर्भ में अनेक मौलिक उद्भावनाएँ 'काव्यमीमांसा' के वैशिष्ट्य हैं। शक्ति तथा प्रतिभा का पृथक् स्वरूप, उनका कारण कार्यभाव सर्वप्रथम 'काव्यमीमांसा' में ही विवेचित है। काव्यार्थ की प्राप्ति से सम्बद्ध व्युत्पत्ति का 'काव्यमीमांसा' में व्यापक स्वरूप वर्णित है। चार मौलिक काव्यार्थ स्त्रोतों की उद्भावना भी नवीन विषय है, किन्तु सरसता का सम्बन्ध आचार्य राजशेखर द्वारा कविवचनों से ही सिद्ध किया गया, काव्यार्थों से नहीं। शिक्षार्थी कवि के बौद्धिक विकास पर अत्यधिक बल देने वाले आचार्य राजशेखर से प्रभावित होकर आचार्य क्षेमेन्द्र तथा विनयचन्द्र ने भी अपने ग्रन्थों में कवि के बौद्धिक विकास में सहायक विभिन्न विषयों का कवि की परिचेय वस्तुओं के संदर्भ में
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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