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________________ [319] फल का सम्पूर्ण अंश उपयोगी होता है, किसी का कुछ अंश। किसी फल का बाह्य भाग उपयोगी है तो किसी का आन्तरिक भाग। सूक्ष्मनिरीक्षणकर्ता आचार्य राजशेखर ने फलों में जो अंश अनुपयोगी होता है उसको फेंक दिया जाता है- इसी आधार पर फलों के छह प्रकारों का नामकरण किया है। 'काव्यमीमांसा' में काल विभाग करते हुए आचार्य राजशेखर ने सर्वाधिक महत्व ऋतुओं के वर्ण्य विषयों के प्रस्तुतीकरण को प्रदान किया, क्योंकि उनके अनुसार प्रबन्धनिर्माता कवि सरस काव्य के निबन्धन हेतु ऋतुवर्णन से अछूता नहीं रह सकता। अत: आचार्य राजशेखर ने कविशिक्षक का कर्तव्यनिर्वाह करते हए अपने प्रबन्ध काव्य में एक दो, तीन या सभी ऋतुओं के विषय निबन्धन का कवि को निर्देश दिया है। ऋतु निबन्धन काव्यार्थ के अनुकूल ही होना चाहिए। काव्यार्थ की दृष्टि से यदि उचित हो ऋतुओं का विपरीत क्रम से निबन्धन भी दोष नहीं होता। प्रबन्ध निर्माता कवि के लिए काव्यकथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ऋतुवर्णन में भी कथा का आधार तिरस्कृत नहीं होना चाहिए। ऋतुवर्णन सर्वथा प्रासङ्गिक ही होना चाहिए। यह सभी ऋतुवर्णन सम्बन्धी अनुपम निर्देश 'काव्यमीमांसा' के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं मिलते। 1. एकद्विव्यादिभेदेन सामस्त्येनाथवा ऋतून्। प्रबन्धेषु निबनीयात्क्रमेण व्युत्क्रमेण वा।। न च व्युत्क्रमदोषोऽस्ति कावार्थपथरमशः तथा कथा कापि भवेद कामो भूषण यथा। (काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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