SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [318] केवल दो मास तक ही रहते हैं । 1 प्रकृति के एक-एक दृश्य का अत्यन्त सूक्ष्म निरीक्षण कर आचार्य राजशेखर ने अपने कविशिक्षक रूप को गौरवान्वित किया है। उनके इस विवेचन से प्रकृति वर्णन करने वाला कवि लताओं और वृक्षों के वर्णन में प्रमाद से दूर रह सकेगा। ऋतु वर्णन में लताओं तथा वृक्षों का वर्णन काव्य में सौन्दर्य की सृष्टि करता है, अतः कवि उनके वर्णन का लोभ संवरण नहीं कर पाते। फलों के प्रकार : विभिन्न ऋतुओं, उनके वृक्षों, लताओं, पुष्पों पर सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले आचार्य राजशेखर ने प्रत्येक ऋतु के प्रत्येक फल का सम्यक् निरीक्षण कर उनके उपयोगी, अनुपयोगी अंशों की दृष्टि से फलों में परस्पर भेद का निर्धारण किया तथा छह प्रकार के फलों का 'काव्यमीमांसा' में उल्लेख किया (क) अन्तर्व्याज (ख) बहिर्व्याज (ग) उभयव्याज (घ) सर्वव्याज (ङ) बहुव्याज (च) निर्व्याज • बड़हर आदि । केला आदि। - आम आदि। ककुभ आदि। कटहल आदि । नीलकैथ आदि 12 संसार को पुष्प, फल देने वाली प्रकृति में फूलों, फलों की विविधता सर्वत्र दिखती है। किसी -- - - 1 यत्प्राचि मासे कुसुमं निबद्धं तदुत्तरे बालफलं विधेयम् । तदग्रिमे प्रौढिधरं च कार्यं तदग्रिमे पाकपरिष्कृतं च ॥ मोद्भवानां विधिरेष दृष्टो वल्लीफलानां च महाननेहा। तेषां द्विमासावधिरेव कार्य: पुष्पे फले पाकविधी व कालः ॥ (काव्यमीमांसा अष्टादश अध्याय) 2 अन्तर्व्याजं बहिर्व्याजं बाह्यान्तर्व्याजमेव च । सर्वव्याजं बहुव्याजं निर्व्याजं च तथा फलम् ॥ लकुचाद्यन्तर्व्याजं तथा बहिर्व्याजमत्र मोचादि आम्राद्युभयव्याजं सर्वव्याजं च ककुभादि। पनसादि बहुव्याजं नीलादि भवति निर्व्याजम् सकलफलानां पोदा ज्ञातव्यः कविभिरिति भेदः ॥ (काव्यमीमांसा अष्टादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy