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है। ऐसी अवस्था में काव्यनिर्माता कवि की संशयात्मक स्थिति से रक्षा हेतु आचार्य राजशेखर ने
महाकवियों के उल्लेखों को प्रमाण रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया है।।
आचार्य राजशेखर ने कवियों के लिए अन्य अनेक उपयोगी विषय भी काव्यमीमांसा में प्रस्तुत किए हैं। यथा विभिन्न ऋतुओं में उत्पन्न पुष्पों की उपयोगिता का कारण। काल निरीक्षण की सूक्ष्मता तथा मौलिकता को प्रकट करते हुए आचार्य ने वृक्षों में लगने वाले पुष्पों, फलों तथा लताओं में लगने वाले पुष्पों, फलों के समय के अन्तर को भी स्पष्ट किया है। फलों के प्रकारों का भी उनकी उपयोगिता की दृष्टि से 'काव्यमीमांसा' में सूक्ष्म निरीक्षण किया गया है।
पुष्यों की उपयोगिता :
शोभा, अन्न, गन्ध, रस, फल और अर्चन यह कारण किसी भी पुष्प को उपयोगी बनाते हैं ।। कवि को किसी भी ऋतु के पुष्पों का वर्णन करते समय उनके इन गुणों पर दृष्टि अवश्य रखनी चाहिए।
वृक्ष तथा लताओं के फूलों-फलों में समयान्तर :
वृक्षों में लगने वाले पुष्पों, फलों का चार मास का क्रम होता है।
(क) प्रथम मास में पुष्पोद्गम,
(ख) द्वितीय मास में बालफल,
(ग) तृतीय मास में प्रौढ़ता
(घ) चतुर्थ मास में फल का पकना तथा परिष्कृत होना।
लताओं में लगने वाले फूलों और फलों की समयावधि अल्प होती है। लता के फूल, फल
1 देशेषु पदार्थानां व्यत्यासो दृश्यते स्वरूपस्य। तन्न तथा बध्नीयात्कविबद्धमिह प्रमाणं नः॥
(काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय) 2 शोभान्धोगन्धरसै: फलार्चनाभ्यां च पुष्पमुपयोगि। षोढा दर्शितमेतत्स्यात्सप्तममनुपयोगि।
(काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय)