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________________ [310] शिशिरकाल के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है।। 'ऋतुसंहार' में वर्णित शिशिर ऋतु : शिशिर ऋतु पके हए धानों एवं गन्नों के समूह से मनोहारी तथा क्रौञ्च पक्षियों के कलरव से गुञ्जायमान होती है (5/1), बन्द खिड़की वाले घर का अन्दरवाला भाग, अग्नि, सूर्यदेव की किरणें धृप, मोटे कपड़े सेवन योग्य होते हैं (5/2), चन्द्रमा की किरणों के समान शीतल चन्दन तथा सघन बर्फ के समान शीतल पवन रुचिकर नहीं लगते (5/3), बर्फ के समूह के गिरने से शीतल तथा चन्द्रमा की किरणों के कारण अधिक शीतलतर रातें सेवन योग्य नहीं होती (5/4), गुड़निर्मित भोज्य पदार्थों की प्रधानता रहती है, स्वादिष्ट नए धान का भात और गन्ने का रस मधुर लगता है (5/16)। शिशिर ऋतु का यह मनोहारी स्वरूप'ऋतसंहार' के पञ्चम सर्ग में वर्णित है। 'काव्यमीमांसा' में वर्णित बसन्त ऋतु वृक्ष जगत् का परिवर्तन : यह बसन्तकाल आम की बौरों को उत्पन्न करने वाला है। कामदेव ऋतु के नवीन पुष्पों से धनुषदण्ड की रचना करता है। कनैल और कचनार के वृक्ष पुष्पों से लद जाते हैं । कोविदार विकसित तथा सिन्दुवार विकासोन्मुख होते हैं। रोहिड़ा, आमड़ा, किंकिरात, महुआ, केला, माधवीलता और सहजन के वृक्ष कलियों और पुष्पों से भरने लगते हैं, इसलिए यह वृक्ष केसरयुक्त हो जाते हैं। दमनक के वृक्षों का विकास होता है। ___ इस ऋतु में कुरबक, तिलक, अशोक और बकुल वृक्ष बिना दोहद के ही पुष्प प्रसव करने लगते हैं, जबकि कुरबक रमणी के आलिङ्गन से, तिलक वृक्ष उसकी चितवन से, अशोक वृक्ष पादाघात से और बकुल वृक्ष मद्यगण्डूष से विकसित होने की परम्परा है। 1 ऋतुजानां तु पुष्पाणां गन्धाघ्राणैस्तथैव च । रूक्षस्य वायो: स्पर्शाच्च शिशिरम् रूपयेद् बुधः। 321 (नाट्यशास्त्र - पञ्चविंश याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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