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________________ वृक्षजगत् में परिवर्तन : मरुबक में फूल खिलते हैं। सभी पुष्पवृक्षों की अपेक्षा कुन्द में पुष्पों की अधिकता दृष्टिगत होती है। सरसों के पौधों के घने और तीखे बाल पककर झड़ने लगते हैं। दो तीन फूल उनमें लगे दीखते हैं। क्रमशः उगने के क्रम से पकते हुए पौधे भूरापन ग्रहण करते जा रहे हैं। वापियों में कमल बेल की सूखी डण्डियाँ ही दिखती हैं । पशुपक्षियों की गतिविधियाँ : मछलियाँ वापी के तलभाग में छिप जाती हैं। हाथी मदोन्मत्त हो जाते हैं। हरिण सन्तुष्ट होकर विचरण करते हैं। शूकर पीन और पुष्ट हो जाते हैं। भैंसे मस्त रहते हैं। शिशिर ऋतु के अन्य वैशिष्ट्य [309] : शिशिर ऋतु की रात्रि लम्बी होती है। प्रचण्ड वायु से शीत उत्पन्न होता है। वापियों का जल उत्तरीय हिमवायु के प्रचण्ड प्रवाह से मानों काँपता रहता है। बर्फीली वायु दुष्ट व्यक्ति के सम्पर्क के समान दुःखद होती है । ओढ़ने, बिछाने के लिए रूई भरे दोहरे वस्त्रों की आवश्यकता होती है। अगुरु के धूप- धूम से भवन और गर्भगृह गर्म किए जाते हैं। नए कण्डों की सधूम अग्नि अच्छी लगती है। शीत से बचने के लिए केसर, कस्तूरी का समुचित सेवन किया जाता है । चन्दन का लेप शरीर को दग्ध करता है । साधनहीन निर्धन इस ऋतु की निन्दा करते हैं। साधन सम्पन्न धनी लोग इसकी प्रशंसा करते हैं। पानी पीने में सरसता, नीरसता की प्रतीति नहीं होती। हिम और अग्नि के स्पर्श में शीतलता, उष्णता का भेद नहीं प्रतीत होता । सेवन करने में सूर्य और चन्द्र का भेद नहीं प्रतीत होता । सूर्य तेजहीन होता है तथा चन्द्रमा मलिन प्रतीत होता है। भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में ऋतुसम्वन्धी पुष्पों को सूँघने के द्वारा तथा रूखी वायु के स्पर्श द्वारा
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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