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________________ [308] बने नए चावल, सघन मलाई वाला दही और सरसों के कोमल डंठलों वाला साग भी सुपच होता है। वैद्य की आवश्यकता नहीं पड़ती। स्नान के लिए गुनगुना जल अच्छा लगता है। प्रातः काल सभी ओर पानी से उठता हुआ वाष्प दीख पड़ता है। घरों के भीतरी शयनकक्षों में गद्दे आदि आवश्यक साधनों से सजे पलङ्ग तथा धूमरहित अंगारों से भरी अंगीठियाँ आदि उपलब्ध हों तभी हेमन्त ऋतु भी ग्रीन का शेप भाग प्रतीत होने लगती है अर्थात् रुचिकर प्रतीत होती है। भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में हेमन्त ऋतु का गात्रसंकोचन, सूर्यसेवन, सिर, दन्त, ओष्ठ के कम्पन, कूजित, शीत्कार आदि के द्वारा प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है ।। 'ऋतुसंहार' में वर्णित हेमन्त ऋतु : लोध्रपुष्पों का विकास, धान का पकना। कमल विलीन हो जाते हैं। पाला गिरता है। (4/1), ग्राम की सीमा के भाग प्रचुर धानराशि से परिपूर्ण, हरिणियों के झुण्डों से सुशोभित तथा सुन्दर क्रौञ्च पक्षियों की मधुर ध्वनि से गुञ्जायमान होते हैं (4/8), सुशीतल तालाब, सरोवर खिले हुए नीलकमलों से सुशोभित, मदोन्मत्त कादम्ब नामक हंसजातीय पक्षिविशेष से विभूषित, स्वच्छ जलवाले होते हैं (4/9), प्रियङ्गु लता पकने की स्थिति में पहुँचकर पाण्डु वर्ण की हो जाती है (4/10), यह महाकवि कालिदास द्वारा 'ऋतुसंहार' के चतुर्थ सर्ग में वर्णित सुन्दर, शीतल हेमन्त ऋतु है। 'काव्यमीमांसा' में वर्णित शिशिर ऋतु : यद्यपि शिशिर ऋतु के अधिकांश वर्णनीय विषय हेमन्त ऋतु के समान ही हैं,2 फिर भी इस ऋतु की कुछ अन्य विशेषताओं का आचार्य राजशेखर ने काव्यमीमांसा में उल्लेख किया है। 1 गात्रसंकोचनाच्चापि सूर्याभिपटुसेवनात् हेमन्तस्त्वभिनेतव्यः पुरुषैर्मध्यमाधमैः। 29 1 शिरोदन्तोष्ठकम्पेन गात्रसंकोचनेन च। कूजितैश्च सशीत्कारैराधमश्शीतमादिशेत्। 30। अवस्थान्तरमासाद्य कदाचित्तूतमैरपि। शीताभिनयनं कुर्याद्देवाद्वयसनसंभवम्। 311 नाट्यशास्त्र (पञ्चविंश अध्याय) 2. 'हेमन्तधर्मा शिशिरः' (काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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