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रक्त अशोक, नील अशोक और स्वर्ण अशोक अधिक विकसित होते हैं। सुपारी, नारियल,
हिन्ताल, गुलाब, पलाश, खजूर, ताड़ और ताड़ीवृक्षों में बसन्त में ही पुष्यों की उत्पत्ति होती है।
पशु पक्षियों की गतिविधियाँ :
सुग्गे, मैना, हारिल, पपीहा और भ्रमर-इन पक्षियों का मद बढ़ता है। बसन्त कोयलों की मदवृद्धि का कारण है। कोयलों की मीठी कूक सुनाई देती है। पुंस्कोकिल पञ्चम राग में कूकता है। बसन्त ऋतु के अन्य वैशिष्ट्य :
सौभाग्यवती ललनाएँ साज शृंगार में व्यस्त रहती हैं। माधवी लता के पुष्पों से केश गूंथती हैं। उनकी सिन्दूर सुशोभित माँग तथा कुसुम (चम्पई) रंग के वस्त्र मनोहारी प्रतीत होते हैं। स्त्रियों का मन हास-विलास, नृत्य-गान, झूला-हिंडोला, गौरी पूजा, कामदेव-पूजा आदि में अधिक लगता है। 'काव्यमीमांसा' के इस उल्लेख से प्रतीत होता है कि तत्कालीन समाज में बसन्त काल में गौरीपूजन, नवरात्र, मदनमहोत्सव आदि अनेक व्रत और उत्सव प्रचलित थे।
भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में आमोद-प्रमोद तथा अनेक प्रकार के पुष्पों के प्रदर्शन से बसन्त ऋतु के अभिनय का निर्देश दिया गया है।।
'ऋतुसंहार' में वर्णित बसन्त ऋतु :
बसन्तयोद्धा विकसित, नूतन आम्रपल्लवरूपी बाणों वाला तथा भ्रमरपंक्तिरूपी सुन्दर धनुष की प्रत्यञ्चा धारण करता हुआ आ पहुँचा है (6/1), वृक्ष पुष्पों से युक्त हैं, जल कमल से सुशोभित है। पवन सुगन्धित है, रात सुखदायक तथा दिन मनोहारी है (6/2), इस ऋतु में वापी का जल, चन्द्रकिरणें तथा पुष्पों से युक्त आम के वृक्ष सौभाग्य प्राप्त करते हैं (6/3), कर्णिकार तथा नवमल्लिका के विकसित पुष्प (6/5), लोग मोटे वस्त्रों को छोड़कर लाक्षारस से रंगे, कृष्णचन्दन से सुरभित हल्के, महीन वस्त्र धारण
1 प्रमोदजननारम्भैरूपभोगैः प्रविधिः बसन्तस्त्वभिनेतव्यो नानापुष्पप्रदर्शनात्। 331
(नाट्यशास्त्र - पञ्चविंश अध्याय)