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________________ [299] तीन ऋतुओं के अयन और दो अपनों के वत्सर होते हैं - यह बताता है। विभिन्न ग्रन्थों में अपने विभिन्न घटकों सहित विवेचित यह काल अबाध गति से चलता रहता है किन्तु इसका स्वरूप किसी को भी स्पष्टत: ज्ञात नहीं हो पाता। यह काल अव्यक्त स्वरूप में ही आता है और चला भी जाता है। इसी कारण यास्क के निरुक्त में जो मृढ़ के समान अव्यक्त रहकर शीघ्रता से चला जाता है उसको ही काल कहा गया है। 2 सम्पूर्ण वर्ष में दिन-रात का बढ़ना, घटना : 'काव्यमीमांसा' में यह उल्लेख भी आचार्य राजशेखर ने किया है कि वर्ष के कुछ मास ऐसे हैं जिनमें दिन और रात बराबर होते हैं, कुछ महीनों में दिन बड़ा तथा कुछ महीनों में रात बड़ी होती है। तीस मुहूर्तों से बनने वाला दिन-रात चैत्र और आश्वयुज मास में बराबर होता है अर्थात् पन्द्रह मुहूर्त का दिन और पन्द्रह मुहूर्त की रात । तत्पश्चात् चैत्र के बाद प्रत्येक मास में दिन में एक मुहूर्त की वृद्धि तथा रात्रि में एक मुहूर्त की हानि होती है। ऐसा तीन महीनों तक होता है। तत्पश्चात् रात में एक मुहूर्त की वृद्धि होती है और दिन में एक मुहूर्त की हानि होती है। यह क्रम आश्वयुज तक चलता है। आश्वयुज में दिन और रात बराबर हो जाते हैं। फिर यही क्रम विपरीत हो जाता है अर्थात् रात में एक मुहूर्त की वृद्धि तथा दिन में एक मुहूर्त की हानि होती है। तीन महीनों तक यही क्रम चलता रहता है। तत्पश्चात् दिन में एक मुहूर्त की वृद्धि तथा रात्रि में एक मुहूर्त की हानि होती है। चैत्र मास में दिन और रात पुनः बरावर हो जाते हैं। आचार्य राजशेखर के इस विवेचन का आधार कौटिल्य का अर्थशास्त्र है । अर्थशास्त्र 1. (क) अहोरात्रे विभजते सूर्यो मानुपदैविके रात्रिः स्वप्नाय भूतानां चेष्टायै कर्मणामहः। 65 (मनुस्मृति प्रथम अध्याय) - (ख) मासस्त्रिंशदहोरात्रं द्वौ द्वौ मासावृतुः स्मृतः । 88 ऋतुत्रयमप्ययनमयने द्वे तु वत्सरः अहोरात्रे विभजते सूर्यो मानुषदैविके । 89 | (भविष्यपुराण भाग 1 ब्राह्म पर्व (2) सृष्टिवर्णन ) 2 "मुहुर्मूड इव कालः कालो मूढ इव अव्यक्तः सन् झटिति गच्छति स मुहुः शब्देनोच्यते। " [ निरुक्त यास्क, अध्याय-2, पाद - 7, ख 26)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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