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________________ [300] में भी दिन और रात्रि के मुहूर्तवृद्धि तथा हानि का ऐसा ही विवरण प्राप्त होता है।। सौरमान, पितृ मासमान तथा चान्द्रमास : 'काव्यमीमांसा'' में तीन प्रकार के मास-मानों का भी उल्लेख है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राखि में जाना मास कहलाता है। वर्षा ऋतु से छह मास तक दक्षिणायन तथा शिशिर ऋतु से छह मास तक उत्तरायण होता है। दो अयनों का संवत्सर होता है। यह कालगणना 'सौरमान' के अनुसार है ।2 पन्द्रह दिन-रात का पक्ष होने पर जिस पक्ष में चन्द्रमा की वृद्धि होती है वह शुक्ल पक्ष है तथा अन्धकार की वृद्धि वाला पक्ष कृष्णपक्ष है। यह पितृ मासमान है, इसमें पक्ष का क्रम शुक्ल और कृष्ण का है। इसी मास मान के अनुसार वेदों द्वारा कही गई समस्त क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं ३ पितृमास के विपरीत पक्षों का स्वरूप होने पर चान्द्रमास होता है। चान्द्रमास में पहले कृष्ण और तत्पश्चात् शुक्ल पक्ष होता है। कवियों का तथा आर्यावर्तनिवासियों का चान्द्रमास ही आधार बनता है। 1 (क) ते च चैत्राश्वयुजमासयोर्भवतः। चैत्रात्परं प्रतिमासं मौहूर्तिकी दिवसवृद्धिः निशाहानिश्च त्रिमास्याः, ततः परं मौहूर्तिकी निशावृद्धिः दिवसहानिश्च। आश्वयुजात्परतः पुनरेतदेव विपरीतम् (काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय) (ख) पञ्चदशमुहूर्तो दिवसो रात्रिश्च चैत्रे मास्याश्वयुजे च मासि भवतः। ततः परं त्रिभिर्मुहूतैर्रन्यतरष्यण्मासं वर्धते हासं ते चेति। कौटिलीय अर्थशास्त्र (द्वितीय अध्याय) अध्यक्ष प्रचारः, प्रकरण - देशकालमानम् 2 राशितो राश्यन्तरसङ्क्रमणमुष्णभासो मासः, वर्षादि दक्षिणायनम, शिशिराद्युत्तरायणं, द्वययनः संवत्सर इति सौरं मानम्। (काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय) 3. पञ्चदशाहोरात्रः पक्षः। वर्द्धमानसोमः शुक्लो वर्द्धमानकृष्णिमा कृष्ण इति पित्र्यं मासमानम् । अमुना च वेदोदितः कृत्स्नोऽपि क्रियाकल्पः। (काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय) 4. पित्र्यमेव व्यत्ययितपक्षं चान्द्रमसम् । इदमार्यावर्तवासिनश्च कवयश्च मानमाश्रिता: (काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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