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यही अवस्थाएँ विवेचित हैं, केवल इन ग्रन्थों में काष्ठा के गणक निमेषों की संख्या अठारह हो गई है।। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के देशकालमान प्रकरण में भी विस्तृत कालविवेचन प्राप्त होता है। दो त्रुटों का लव, दो लवों का निमेष है। यहाँ पर काष्ठा पाँच निमेषों की बताई गई है। तीस काष्ठा की कला, चालीस कला की नालिका, दो नालिका का मुहूर्त भी 'अर्थशास्त्र' में उल्लिखित है ? 'काव्यमीमांसा' में काल के घटक निमेष, काष्ठा, कला, मुहूर्त, दिन ,रात, पक्ष, मास, ऋतु, अयन और संवत्सर हैं। 'अर्थशास्त्र' में भी इसी प्रकार का वर्णन प्राप्त है तथा त्रुट, लव, निमेष, काष्ठा, कला, नालिका, मुहूर्त, दिवस, रात्रि, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर और युग काल के द्योतक हैं। यह काल शीत, उष्ण और वर्षा के स्वभाव वाला है और रात्रि, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन तथा संवत्सर उसके विशेष रूप हैं 3 मानुष
और दैविक दिन रात का सूर्य विभाग करता है। रात्रि प्राणियों के स्वप्न हेतु होती है तथा दिन उन्हें क्रियाशील बनाता है- यह उल्लेख मनुस्मृति में भी मिलता है, भविष्य पुराण भी सूर्य द्वारा मानुष तथा दैविक दिन और रात के विभाजन का उल्लेख करते हुए तीस दिन-रात के मास, दो-दो मासों की ऋतु,
1. (क) निमेषा दश चाष्टौ च काष्ठा, त्रिंशत्तु ताः कला। त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यादहोरात्रं तु तावतः। 641
(मनुस्मृति - प्रथम अध्याय)
(ख) निमेषा दश चाष्टौ च अक्ष्णः काष्ठा निगते 186। त्रिंशत्काष्ठाः कलामाहुः क्षणस्त्रिंशत्कला स्मृताः। मुहूर्तमथ मौहूर्ता
वदन्ति द्वादश क्षणम्। 871 त्रिशन्मुहूर्तमुद्दिष्टमहोरात्रं मनीषिभिः। 881(भविष्यपुराण- भाग 1 ब्राह्म पर्व- (2) सृष्टिवर्णन ) 2 द्वौ त्रुटौ लवः। द्वौ लवौ निमेषः, पञ्च निमेष: काष्ठा, त्रिंशत्काष्ठा कला चत्वारिंशत्कला: नाडिका। द्विनालिका मुहूर्तः।
कौटिलीय अर्थशास्त्र - द्वितीय अध्याय, अध्यक्ष प्रचारः, प्रकरण - देशकालमानम् 3 (क) पञ्चदशाहोरात्रः पक्षः।-----------द्वौ पक्षौ मासः। द्वौ मासावृतुः। षण्णामृतूनां परिवर्तः संवत्सरः।
(काव्यमीमांसा - अष्टादश अध्याय) (ख) कालः शीतोष्णवर्षात्मा। तस्य रात्रिरह: पक्षो मास ऋतुरयनं संवत्सरो युगमिति विशेषाः। (अर्थशास्त्र (कौटिल्य) नवमधिकरणम् अभियास्यत्कर्म - शक्तिदेशकालबलाबलज्ञानम्) कालमानमत ऊर्ध्वम्। त्रुटी लवी निमेष:, काष्ठा, कला नालिका, मुहूर्तः पूर्वाभागौ दिवसो रात्रिः पक्षो मास ऋतुरयनं संवत्सरो युगमिति कालाः।----- ------पञ्चदशाहोरात्रः पक्ष:------- द्विपक्षो मासः।-------द्वौ मासावृतुः।------शिशिराद्युत्तरायणम्। वर्षादि दक्षिणायनम् । द्वययनस्संवत्सरः पञ्च संवत्सरो युगामिति । अर्थशास्त्र (कौटिल्य) द्वितीय अध्याय, अध्यक्ष प्रचार :, प्रकरण - देशकालमानम्।