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________________ [297] काल विवेचन 'काव्यमीमांसा' के काल विभाग नामक अध्याय में कवियों के ज्ञान हेतु काल की विस्तृत विवेचना आचार्य राजशेखर द्वारा प्रस्तुत की गई है। इसी संदर्भ में छ: ऋतुओं के पेड़, पौधों, फलों फूलों का वर्णन भी उन्होंने किया है। प्रत्येक ऋतु में पशु पक्षियों की गतिविधियाँ तथा मनुष्यों के व्यवहार तथा भोजन आदि का कवि को ज्ञान होना परम आवश्यक है। विभिन्न ऋतुओं का ज्ञान देने के साथ ही 'काव्यमीमांसा' दो ऋतुओं के मध्य की अवस्था का भी सूक्ष्म विवेचन करते हुए फलों तथा उनके विभिन्न अंशों की उपयोगिता को भी प्रदर्शित करती है। काल गणना : आचार्य राजशेखर के समक्ष कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मनुस्मृति, वायुपुराण तथा भविष्य पुराण आदि ग्रन्थों का काल विवेचन उपस्थित था। आचार्य राजशेखर ने प्रथम श्लोक वायुपुराण (अ0 50, श्लोक 169) से उद्धृत करते हुए काल गणना प्रारम्भ की है-पन्द्रह निमेषों की एक काष्ठा, तीस काष्ठाओं की एक कला, तीस कलाओं का एक मुहूर्त और तीस मुहूर्तों का दिन रात होता है ।। वायुपुराण के मन्वन्तर कथन में भी दिन और रात के सूक्ष्म से सूक्ष्म अंशों का विवेचन करते हुए काल गणना की गई है। पन्द्रह निमेषों की एक काष्ठा, पाँच क्षणों का लव, तीन लवों की बीस काष्ठा होती है। तीस लव की एक कला तथा तीस कला का मुहूर्त होता है। तीस मुहूर्तों का अहोरात्र होता है । विष्णुपुराण में भी इसी प्रकार काल गणना की गई है 3 मनुस्मृति तथा भविष्यपुराण में भी काल की 1. काष्ठा निमेषा दश पञ्च चैव त्रिंशच्च काष्ठाः कथिता: कलेति। त्रिंशत्कलश्चैव भवेन्मुहूर्तस्तैस्त्रिंशता रात्र्यहनी समेतौ ॥ (काव्यमीमांसा - सप्तदश अध्याय) (वायुपुराण 50/169) 2 मानुषाक्षिनिमेषास्तु काष्ठा पञ्चदश स्मृताः। लवः क्षणास्तु पञ्चैव विंशत्काष्ठा तु ते त्रयः। 961 लवास्त्रिंशत्कला ज्ञेया मुहूर्तस्त्रिंशत: कलाः। 97। मुहूर्तास्तु पुनस्त्रिंशदहोरात्रमिति स्थितिः।------- 1 98 । (वायुपुराण - द्वितीय खण्ड) (अध्याय - 62 - मन्वन्तर कथन) 3 "काष्ठा निमेषा दश पञ्च चैव त्रिंशज काष्ठा गणयेत्कलांश्च त्रिंशत्कलैश्चैव भवेन्महतैस्तैस्त्रिंशता रात्र्यहनी समेते॥" (विष्णुपुराण द्वि० अंश, अ०8, श्लोक - 60)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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