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________________ [276] योग दर्शन के व्यास भाष्य में विभूतिपाद के 'भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्' इस 3-26वें सूत्र की व्याख्या में ब्रह्माण्ड विभाजन - 'तत्प्रस्तारः सप्तलोकाः। तत्रावीचेः प्रभृति मेरुपृष्ठं यावदित्येष भूर्लोकः। मेरुपृष्ठादारभ्य आध्रुवाद् ग्रहनक्षत्रताराविचित्रोऽन्तरिक्षलोकः। तत्पर: स्वर्लोकः पञ्चविधः। माहेन्द्रस्तृतीयो लोकः। चतुर्थो प्राजापत्यो महर्लोकः। त्रिविधो ब्राह्मः तद्यथा - जनलोकस्तपोलोकः सत्यलोकः इति। भूलोक को 14 विभागों में विभक्त किया गया है। इनमें भूमण्डल सबसे मुख्य सबसे ऊपर का भाग है। शेष तेरह लोक इस भूमि के नीचे स्थित हैं। इनमें सबसे अन्तिम सीमा को 'आवीचि' कहा जाता है। ''आवीचि' से प्रारम्भ होने वाले छः लोक 'महानरक' इस सामान्य नाम से कहे जाते हैं। इनके अलग-अलग नाम (1) घन, (2) सलिल, (3) अनिल, (4) अनल, (5) आकाश और (6) तम कहे गए हैं। इनके दूसरे नाम क्रमशः महाकाल, अम्बरीष, रौरव, महारौरव, तामिस्त्र और अन्धतामिस्त्र भी कहे जाते हैं - इन छ: नरकलोकों के बाद सात पाताललोक आते हैं। इन चौदहों को मिलाकर 'भूलोक' कहलाता है। हिन्दी अभिनव भारती (भूमिका) इस प्रकार लोक की संख्या भिन्न-भिन्न स्थानों पर एक से लेकर इक्कीस तक वर्णित है, किन्तु आचार्य राजशेखर लोकसंख्या के वर्णन के प्रसङ्ग में कवि की इच्छा को सर्वोपरि मानते हैं। कोई भी वस्तु सामान्य वर्णन की इच्छा होने पर अनेक रूपों में वर्णित हो सकती है। विभिन्न पुराणों से भी लोकों की संख्या का ज्ञान प्राप्त होता है। वायुपुराण तीन संख्या वाली वस्तुओं के साथ तीन लोकों का उल्लेख करता 1. जगज्जगदेकदेशाश्च देशः। द्यावापृथिव्यात्मकमेकं जगदित्येके।------ 'दिवस्पृथिव्यौ द्वे जगती' इत्यपरे।------- 'स्वय॑मर्त्यपातालभेदास्त्रीणि जगन्ति' इत्येके--------'तान्येव भूर्भुवः स्वः' इत्यन्ये ------- 'महर्जनस्तपः सत्यमित्येतैः सह सप्त' इत्यपरे। -------- 'तानि सप्तभिर्वायुस्कन्धैः सह चतुर्दश' इति केचित्। -------- तानि सप्तभिः पातालैः सहकविंशति' इति केचित्। -------- 'सर्वमुपपन्नम्' इति यायावरीयः। अविशेषविवक्षा यदेकयति, विशेषविवक्षात्वनेकयति। (काव्यमीमांसा - सप्तदश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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