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________________ [271] आचार्य राजशेखर केवल विद्वान् और कवि पुरूष समाज से ही परिचित नहीं थे। तत्कालीन समाज में उन्होंने स्त्रियों का भी पुरूषों के समान ही अधिकारों से सुसज्जित रूप देखा था। उनके समय में अनेक स्त्रियाँ विदुषी तथा कवयित्री थीं। उनकी पत्नी अवन्तिसुन्दरी महती विदुषी के रूप में समाज में सम्मानित थी। राजकुमारियों तथा मंत्रियों की पुत्रियों तथा समाज के सभी वर्गों की स्त्रियों में विद्वता तथा कवित्व देखा गया था। इस प्रकार राजा के संरक्षण में सम्पूर्ण समाज साहित्यिक महिमा से मण्डित था। विद्वानों की संङ्गति तथा स्वविद्वता राजा को विनीत बनाकर उसका तथा उसकी प्रजा का महान् उपकार करती थी। कौटिल्य ने भी 'अर्थशास्त्र' में राजा को शिक्षा देते हुए यह तथ्य स्वीकार किया था2 1. पुरूषवत् योषितोऽपि कविभवेयुः । श्रूयन्ते दृश्यन्ते च राजपुत्र्यो महामात्यदुहितरो गणिकाः कौतुकिभार्याश्च शास्त्रप्रहतबुद्धयः कवयश्च। (काव्यमीमांसा - दशम अध्याय) 2 नित्यं विद्यावृद्धसंयोगो विनय वृद्धयर्थम्। 11। विद्याविनीतो राजा हि प्रजानाम् विनये रतः। अनन्यां पृथिवीं भुतं सर्वभूतहिते रत 117। प्रथम विनयाधिकारिकम् द्वितीय प्रकरण (वृद्धसंयोग) अर्थशास्त्र (कौटिल्य) भाग-1
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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