SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [254] सम्मेलन करते थे। वह सम्मेलन समाज था तथा उसमें भाग लेने वाले सामाजिक थे। काव्यमीमांसा में सन्त का उल्लेख है, जिन्होंने उशना की छन्दोबद्ध वाणी सुनकर उन्हें कविसंज्ञा प्रदान की। तभी से लोक में छन्दरचना करने वाले कवि कहकर पुकारे जाने लगे। बाद में सम्भवत: यही सन्त काव्य के परीक्षक भावक बनकर काव्य के अर्थतत्व, भावतत्व, गुणदोषादि का विश्लेषण करते हुए काव्यशास्त्र के निर्माता भी बन गए होंगे। सरस काव्य के मर्मज्ञ सहृदय भी कहलाते थे। आलोचक सहृदय होने पर ही हृदय की गहराई से काव्यानुभूति करते हुए काव्य की यथार्थ समालोचना कर सकता है। काव्य के अन्तस्तल तक पहुँचने की क्षमता ही भावक का वैशिष्ट्य है। आचार्य कुन्तक की धारणा है कि काव्य के अमृतरस से सहृदयों के हृदय में जो चमत्कार उत्पन्न होता है वह उन्हें चतुर्वर्ग की प्राप्ति से भी अधिक आनन्द देता है 3 सौन्दर्यबोध मानवमात्र का गुण है, किन्तु कवि और आलोचक में सौन्दर्यबोध की पराकाष्ठा होनी चाहिए तभी कवि वस्तुओं के सुन्दरतम रूप को काव्य में प्रस्तुत करता है तथा सहदय काव्य में वर्णित वस्तु के उस सुन्दरतम रूप को हृदय से अनुभव कर उसका मूल्याङ्कित स्वरूप जगत् के समक्ष उपस्थित करता है। सहृदय, साहित्यानुभव से युक्त, काव्यों के रहस्यान्वेषण में सतत प्रयत्नशील रहने वाला, निष्पक्ष तथा व्यक्तिगत राग द्वेष से रहित व्यक्ति ही काव्य की व्याख्या तथा मूल्याङ्कन में समर्थ होकर श्रेष्ठ समालोचक बन सकता है । सहृदय काव्य की रसानुभूति काव्य को पढ़ने अथवा सुनने से ही 1 पक्षस्य मासस्य वा प्रज्ञातेऽहनि सरस्वत्या भवने नियुक्तानां नित्यं समाजः । (1/4/27) कामसूत्र (वात्स्यायन) इसकी जयमङ्गला टीका'सरस्वती च नागरकाणां विद्याकलासु अधिदेवता, तस्या आयतने नियुक्तानाम् नामकेन पूजोपचारकत्वे प्रतिपक्ष प्रतिमासं च ये नियुक्ताः नागरकनटाद्यो नतितुं, तेषां समाजः स्वव्यापारानुष्ठानेन मिलनं यस्मिन् प्रवृत्तं नागरकाः सामाजिकाः भवन्ति।' 2. ततः प्रभृति तमुशनसं सन्तः कविरित्याचक्षते। तदुपचाराच्च कवयः कवय इति लोकयात्रा। काव्यमीमांसा - (तृतीय अध्याय) 3 चतुर्वर्गफलास्वादमप्यतिक्रम्य तद्विदाम्। काव्यामृतरसेनान्तश्चमत्कारो वितन्यते । 5। प्रथम उन्मेष वक्रोक्तिजीवित (कुन्तक)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy