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________________ [253] है।1 काव्य के चारुत्व, अचारुत्व का निश्चय सहृदय ही करते हैं। इसलिए आचार्य महिमभट्ट उन्हें काव्यरुपी मणि का पारखी कहते हैं ।2 आचार्य मम्मट का सहृदय भी 'प्रतिभाजुप्' है। सहृदयहृदयहरणक्षमता श्रेष्ठ काव्य की अनिवार्यता है। सहृदय की अपनी प्रतिभा ही उसे काव्यभावना में सक्षम बनाकर उसका मन: प्रसादन करती है। उक्ति का केवल विचित्र तथा लोक शास्त्र में प्रयुक्त शब्द अर्थ के उपनिबन्धन से भिन्न होना ही पर्याप्त नहीं है, कवि कौशल पर आश्रित होना भी अन्तिम प्रमाण नहीं है। सहृदय के मनः प्रसादन की क्षमता से युक्त काव्योक्ति ही सार्थक है 3 आचार्य विश्वेश्वर ने श्रेष्ठ काव्य के भावक रसिक को परमसुखी माना है । दोषत्याग, गुणाधान, अलङ्कार और रसान्वय इन चार प्रकारों से परिष्कृत तथा कविकल्पित साहित्य का भावक रसिक संसार में सुख प्राप्त करता है। कवि की ख्याति, अपख्याति करता हुआ भावक कवि का सर्वस्व है 5 भावक तथा उसकी प्रतिभा का महत्व आचार्य राजशेखर के पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती सभी आचार्य स्वीकार करते थे किन्तु अपने काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ में इन दोनों को विशिष्ट स्थान आचार्य राजशेखर ने दिया। साहित्यशास्त्र में सामाजिक और रसिक पर्याय हैं। समाज के विशिष्ट सत्पुरुष काव्य के प्रारम्भ के समय से ही काव्य की उत्कृष्टता, अपकृष्टता का विवेक करते थे। महाकवि कालिदास के काव्य परीक्षण के अधिकारी सन्त थे। वात्स्यायन के विदग्ध नागरक प्रतिमास या प्रतिपक्ष नियत दिन छोटा सा 1. सर्वथा नास्त्येव सहृदयहृदयहारिणः काव्यस्य स प्रकारोयत्र न प्रतीयमानार्थसंस्पर्शेन सौभाग्यम् तदिदं काव्यरहस्यं परमिति सूरिभिर्विभावनीयम् । 371 (ध्वन्यालोक) (तृतीय उद्योत) 2 चारूत्वाचारुत्वनिश्चये च काव्यतत्वविदः प्रमाणम्' (प्रथम विमर्श) व्यक्तिविवेक (महिमभट्ट) .-----..-काव्यमाणिक्यवैकटिकानां सचेतसाम् द्वितीय विमर्श - व्यक्तिविवेक (महिमभट्ट) 3 शब्दार्थों सहितौ वक्रकविव्यापारशालिनि बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्लादकारिणि। वक्रोक्तिजीवित (कुन्तक) (प्रथम उन्मेष) 4 ईदृशं भावयन् काव्यं रसिकः परमं सुखम् प्राप्नोति कालवैषम्याद् गुणतस्त्रिविधोऽपि सन्। (अष्टम प्रकरण) (साहित्यमीमांसा - विश्वेश्वर) 5 कवेः ख्यातिरपख्यातिर्भावकादेव जायते तस्मात् स एव सर्वस्वं तस्य प्राज्ञैः प्रकीर्तितः । 191 (साहित्यमीमांसा - द्वितीय प्रकरण) (विश्वेश्वर)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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