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________________ [252] करता है, दूसरा कसौटी पत्थर उसकी परीक्षा करता है। एक में अनेक गुणों का समन्वय कठिन है। एक व्यक्ति एक ही कार्य को पूर्णता से कर सकता है। इस विचार का आधार सम्भवत: यह लिया गया है कि कवि ईर्ष्या की भावना के कारण दूसरों के काव्य का सम्यक् आस्वादन नहीं कर पाता। अत: काव्य-समीक्षा का कार्य भावक का है। 'सरस्वत्यास्तत्वं कविसहृदयाख्यम् विजयते' इस रूप में कवि और सहदय एक ही सारस्वततत्व के दो पक्ष हैं। काव्य का चरम उद्येश्य रसास्वाद है। कवि तथा सहृदय को एक ही अनुभूति से अनुप्राणित होना चाहिए। कविकर्म रूपी वह व्यापार जो कवि से आरम्भ होकर रसिक के रसास्वाद में पर्यवसित होता है, काव्य है। काव्यगत शब्दार्थसाहित्य न केवल कविगत व्यापार है न केवल रसिकगत। वह कविसहृदयगत अखण्डानुभवरूप व्यापार है। इसी प्रकार रस काव्यगत भी है, सहृदयगत भी। काव्यगत रस भिन्न-भिन्न स्वभावों के पात्रों के चरित्र से उत्पन्न होता है, तथा सहदयगत रस इन चरित्रों के पठन, श्रवण तथा दर्शन से सहृदयों के मन में जागृत होता है। रसास्वाद की योग्यता व्याकरण अथवा तर्कज्ञान से नहीं प्राप्त होती। इसके लिए रसिक को निर्मल प्रतिभाशाली होना चाहिए।2 इस तथ्य को सभी स्वीकार करते हैं। प्रज्ञा की विमलता तथा वैदग्घ्य से ही हृदयसंवाद्य होकर काव्य आस्वाद्य होता है। तभी सहृदय को काव्य के सामान्य ज्ञान से अधिक रसात्मक व्यङ्गयार्थ की प्रतीति होती है-आचार्य आनन्दवर्धन ने इसी तथ्य का प्रतिपादन किया 1 'कः पुनरनयो/दो यत्कविर्भावयति भावकश्च कविः' इत्याचार्या: 'न' इति कालिदासः। पृथगेव हि कवित्वाद्भावकत्वं, भावकत्वाच्च कवित्वम्, स्वरूपभेदाद्विषयभेदाच्च यदाहु:"कश्चिद्वाचं रययितुमलं श्रोतुमेवापरस्ताम् कल्याणी ते मतिरुभयथा विस्मयं नस्तनोति नोकस्मिन्नतिशयवतां सन्निपातो गुणानामेकः सूते कनकमुपलस्तत्परीक्षाक्षमोऽन्यः॥" (काव्यमीमांसा - चतुर्थ अध्याय) 2 'अधिकारी चात्र विमलप्रतिभानशाली सहृदयः' - अभिनवभारती (अभिनवगुप्त)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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