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________________ [247] महाकवि अन्धे होते हैं। उनकी दिव्यदृष्टि सर्वथा नवीन, दूसरों से अदृष्ट विषयों को ही देखती है। महाकवियों के बुद्धिदर्पण में समृचा विश्व प्रतिबिम्बित होता है। उन महान् आत्माओं के सामने शब्द और अर्थ पहले पहुँचने की होड़ लगाकर दौड़ते रहते हैं। महाकवि कोमलतम भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। किन्तु यदि वे तर्ककर्कश अर्थों का वर्णन भी अपनी सूक्तियों से करते हैं, तो वे कठोर अर्थ भी इस प्रकार कोमल और रमणीय हो जाते हैं, जिस प्रकार सूर्य की सन्तापदायिनी किरणें चन्द्रमा के रूप में परिणत होकर शीतल, कोमल और सन्तापहारिणी हो जाती हैं 2 अत: 'काव्यमीमांसा' से स्पष्ट है कि महाकवियों के प्रतिभाप्रसूत वचनों की आत्मा रस है। महाकवियों की वाणी से निकले वचनों की सहृदयहृदयहारिता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता और सहृदयहृदयहरणक्षमता सरस वचनों में ही होती है। आचार्य राजशेखर ने कविशिक्षक के रूप में काव्यमीमांसा में यह भी स्पष्ट किया है कि कवि के वचन प्रथमतः ही सरस नहीं होते। महाकवि के वचनों की सरसता के परोक्ष में उसकी महती तपस्या भी होती है। मनुष्य यदि जन्म से ही कवित्वशक्ति सम्पन्न होता है तो भी संसार के समक्ष कवि रूप में उसकी उपस्थिति व्युत्पत्ति तथा अभ्यास से प्राप्त कौशल के बिना नहीं होती। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में व्युत्पत्ति तथा अभ्यास की भी विशिष्ट महत्ता प्रतिपादित की है। कवित्वशक्ति के अभिवर्धन तथा विकास के लिए कवि को निरन्तर प्रयत्न करना 1 सारस्वतं चक्षुरवाङ्मनसगोचरेण प्रणिधानेन दृष्टमदृष्टंचार्थजातं स्वयं विभजति तदाहु: सुप्तस्यापि महाकवे : शब्दार्थों सरस्वती दर्शयति तदितरस्य तत्र जाग्रतोऽप्यन्धं चक्षुः। अन्यदृष्ठचरे ह्यर्थे महाकवयों जात्यन्धास्तद्विपरीते तु दिव्यदृशः। (काव्यमीमांसा - द्वादश अध्याय) 2 शब्दार्थशासनविदः कतिनो कवन्तं यद्वाङ्मय श्रुतिधनस्य चकास्ति चक्षुः। किन्त्वस्ति यद्वचसि वस्तु नवं सदुक्ति सन्दर्भिणां स धुरि तस्य गिरः पवित्राः।। (काव्यमीमांसा - त्रयोदश अध्याय) मतिदर्पणे कवीनां विश्वं प्रतिफलति। कथं नु वयं दृश्यामह इति महात्मानामहंपूर्विकयैवशब्दार्थाः पुरो धावन्ति। (काव्यमीमांसा - द्वादश अध्याय) यांस्तर्ककर्कशानर्थान्सूक्तिष्वाद्रियते कविः सूर्यांशव इवेन्दौ तेकाञ्चिदर्चन्ति कान्तताम्॥ (काव्यमीमांसा - अष्टम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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