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वास्तविक वस्तुओं का अलौकिकता से मंडित स्वरूप प्रस्तुत करना। कविसंज्ञा उस विशिष्ट वर्णयिता की ही हो सकती है जिसके चमत्कारमय वर्णन से सहृदयों के मानस में परमानन्द हिलारें लेने लगता है।
कवि में साधारण शब्दों को भी योजना कौशल से असाधारण बनाकर प्रस्तुत करने की क्षमता होती है, क्योंकि कवि का लौकिक अनुभव उसके प्रतिभा के प्रभाव से अलौकिक स्वरूप में उपस्थित होकर काव्य के सौन्दर्य का मूल कारण बनता है। काव्य में सौन्दर्य सरसता के कारण होता है और इसी कारण काव्य सहृदयहृदयहारी भी होता है। आचार्य राजशेखर के श्रेष्ठ, अद्वितीय चिन्तामणि कवि का
वैशिष्ट्य उसके काव्य की सरसता ही है। 'चिन्तामणि' कवि के श्लोक का अर्थ समझ में आते ही सहदयों को रस से ओत प्रोत कर देता है। उसकी कविता में विभिन्न कल्पनाओं का वह अलौकिक
स्फुरण होता है, जो पुराने कवियों की दृष्टि से भी बाहर है।।
आचार्य मम्मट का कविकर्म भी 'लोकोत्तरवर्णनानिपुण' ही है। महिमभट्ट कवि के व्यापार को सामान्य व्यापार नहीं मानते। वह विभावादिघटनास्वभाव वाला होने के कारण रसापेक्षी होता है ।2 आचार्य विश्वेश्वर के अनुसार भी विभावादिसमर्पक, रसाविनाभूत कवि का विशिष्ट गुम्फ रस का प्रतिपादक है अतः कविकर्म तथा वचन असाधारण हैं। उसके वचनों में नवीन वस्तु और नवीन उक्ति की अलौकिक छटा होती है। महाकवियों पर सरस्वती की अमूल्य कृपा और कवित्वशक्ति की महत्ता सिद्ध करती हुई अनेक सूक्तियाँ आचार्य राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' में उपलब्ध हैं। कवित्वशक्ति से युक्त कवि की सुषुप्ति अवस्था में भी काव्यानुकूल शब्द, अर्थ का ज्ञान सरस्वती करा देती है। कवियों का सारस्वत चक्षु (ज्ञानमय चक्षु) वाणी और मन से अगोचर समाधि के द्वारा स्वयं स्पृष्ट, अस्पृष्ट विषयों का निश्चय कर लेता है। दूसरों द्वारा दृष्ट या उच्छिष्ट विषय के सम्बन्ध में
1 चिन्तासमं यस्य रसैकसूतिरुदेति चित्राकृतिरर्थसार्थः । अदृष्टपूर्वो निपुणैः पुराणैः कविः स चिन्तामणिरद्वितीयः॥
(काव्यमीमांसा - द्वादश अध्याय) 2 कविव्यापारश्च न सामान्येन किन्तु विभावादिघटनास्वभावः। अतएव नियमेन रसापेक्षी।
(प्रथम विमर्श) व्यक्तिविवेक (महिमभट्ट) 3 तत्तद्रसाविनाभूतविभावादिसमर्पकः विशिष्टो हि कवेर्गुम्फो रसस्य प्रतिपादकः॥
(षष्ठ प्रकरण) (साहित्यमामांसा-विश्वेश्वर)