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________________ [241] मौलिकता को ही कविगुणों में आचार्य राजशेखर ने विशेष स्थान दिया है-यह बात उनके विभिन्न कविभेदों से स्पष्ट हैं। अर्थहरण कर्ता चार प्रकार के कवियों के अतिरिक्त कवियों का उनका पाँचवां प्रकार महाकवियों का है।। अर्थहरणकर्ता कवि अपने काव्यनिर्माण हेतु कहीं न कहीं पर निर्भर रहते हैं और पाँचवें प्रकार के कवियों के मानस में सरस्वती स्वयं उन्मिषित होती है तथा उनके मानस में अलौकिक, नवीन, सर्वथा मौलिक शब्दों, अर्थों की उद्भावना कराती है। उन्हें अपने काव्यनिर्माण के लिए किसी और पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि उनके लिए शब्द तथा अर्थ का दारिद्रथ कभी नहीं होता। इन महाकवियों के काव्यार्थ अयोनि होते हैं अर्थात् वे अपने अर्थो को कहीं और से न लेकर उनका स्वयं ही आविर्भाव करते हैं। वे अर्थ जिन्हें वे उद्भावित करते हैं लौकिक (लोक से सम्बन्ध रखने वाले), अलौकिक (दिव्य तथा लोक से भिन्न वस्तुओं से सम्बन्ध रखने वाले) तथा लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार की वस्तुओं से सम्बन्ध रखने वाले इस प्रकार तीन प्रकार के होते हैं । इन अयोनि अर्थों का काव्य में सन्निवेश करने वाले कवियों का मौलिकता से विशेष सम्बन्ध है। यह मौलिक अर्थों का उद्भावक कवि राजशेखर के अनुसार चिन्तामणि कवि है। ऐसा ही कवि असाधारण कवि की कोटि में आता है। रस, अलङ्कारों के साथ वह ऐसे अपूर्व अर्थ की योजना करता है जिसका पूर्व कवि अपने काव्य में नियोजन नहीं कर सके थे। ऐसा ही काव्य सहृदयों को रसास्वाद कराता है। इस प्रकार अभ्यासी कवि तथा अन्यों के सदृश अर्थग्रहण कर्ता उच्चकोटि के कवियों के अतिरिक्त कुछ और भी कवि होते हैं जो केवल मौलिक अर्थों की उद्भावना करके काव्य रचना करते 1. भ्रामकश्चुम्बकः किञ्च कर्षको द्रावकश्च सः। स कविलौकिकोऽन्यस्तु चिन्तामणिरलौकिकः ॥ काव्यमीमांसा - (द्वादश अध्याय) 2 चिन्तासमं यस्य रसैकसूतिरुदेति चित्राकृतिरर्थसार्थः। अदृष्टपूर्वो निपुणैः पुराणैः कविः स चिन्तामणिरद्वितीयः॥ काव्यमीमांसा - (द्वादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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