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________________ [240] प्रतीक है। इसी कारण आचार्य राजशेखर का कथन है कि बहुत से अर्थहरण के उपाय ऐसे हैं जिन्हें महाकवि भी अपनाते हैं। नवीनता तथा मौलिकता जो कि श्रेष्ठ काव्य का जीवन है हरण किए गए स्थलों में भी होनी चाहिए ऐसा ही आचार्य राजशेखर का विचार है। इसके अतिरिक्त उच्चकोटि के कवियों का दूसरों के अर्थग्रहण से ग्रहण से कोई सम्बन्ध नहीं है। वे प्रतिभा प्रसूत अर्थों की ही रचना करते हैं और उनकी रचना मौलिकतापूर्ण ही होती है यह भी स्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि आचार्य राजशेखर की दृष्टि में विद्वान् तथा उत्कृष्ट कोटि के कवियों का सम्बन्ध केवल दो ही प्रकार के अर्थहरणों से है-तुल्यदेहितुल्य तथा परपुरप्रवेशसदृश । उनमें से प्रथम में अर्थभिन्न होने पर भी सादृश्य के कारण अभिन्न प्रतीत होते हैं-ऐसी सदृश रचना करने वालों को दूसरे का अर्थग्रहण करने वाला कहना औचित्यपूर्ण नहीं है क्योंकि वे केवल सदृश रचना करते हैं वही अर्थ लेकर रचना नहीं करते । परपुरप्रवेशसदृश में मूल वस्तु का ऐक्य होने पर भी काव्य रचना में भेद होता है-यहाँ भी सादृश्य ही क्रियाशील है, तद्वस्तु नहीं। इसलिए उत्कृष्ट कोटि के कवियों का मौलिकता से नित्य सम्बन्ध आचार्य राजशेखर की दृष्टि से भी माना जा सकता है।। कवि चोर अवश्य होता है आचार्य के इस कथन का सम्बन्ध प्रत्येक कवि के अपने काव्यनिर्माण में किसी पूर्व कवि से प्रभावित होने से ही माना जा सकता है। प्रत्येक कवि दूसरों का अर्थ भी अवश्य ग्रहण करता ही है यह कहना समीचीन नहीं है। यह बात और है कि सहदयों को किसी कवि के काव्य में सदृशता के कारण किसी पूर्व कवि की रचना से अभिन्नता सी प्रतीत होने लगे। उत्कृष्ट कवियों का अर्थहरण से सम्बन्ध नहीं है। आधार की समानता उनके द्वारा वर्णित अर्थों में हो सकती है-किन्तु वही अर्थ वर्णित नहीं होता। यदि होता भी है तो नवीन तथा मौलिक रूप में, नवीन ढंग से। 1 शब्दार्थशासनविदः कतिनो कवन्ते यद्वाङ्मयं श्रुतिधनस्य चकास्ति चक्षुः। किन्त्वस्ति यद्वचसि वस्तु नवं सक्ति मन्दर्भिणां स धुरि तस्य गिरः पवित्राः॥ काव्यमीमांसा - (एकादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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