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रचना में वर्णित अर्थ को दूसरी रचना में आगे पीछे कर देते हैं- व्युत्क्रम में पूर्वरचना में किसी वस्तु का जिस क्रम से वर्णन किया गया था, दूसरी रचना में उसी क्रम को विपरीत कर देते हैं। क्रम परिवर्तन दोनों की समान विशेषता है। व्यस्तक में पूर्वरचना में कही गई बात को दूसरी रचना में उसी ढंग से केवल ऊपर नीचे कर देते हैं, किन्तु व्युत्क्रम में पूर्वरचना में किसी वस्तु का जिस क्रम से वर्णन किया गया था उसी वस्तु का दूसरे क्रम से वर्णन करते हुए रचना करते हैं। यहाँ पूर्व रचना में कही गई बात को ऊपर नीचे नहीं किया जाता, बल्कि पूर्व रचना में वर्णित उस वस्तु के क्रम को बदल दिया जाता है। क्रम परिवर्तन दोनों ही भेदों में किया जाता है किन्तु द्वितीय में संस्कार के साथ, यही उनका भेद है। प्रथम में वाक्यरचना का क्रम परिवर्तित किया जाता है, द्वितीय में वर्ण्य वस्तु का क्रम। तैलबिन्दु, चूलिका एवं कन्द :
प्रतिबिम्बकल्प अर्थहरण का तैलबिन्दु नामक भेद भी अन्य कई अर्थहरण भेदों से समानता रखता है-जैसे तुल्यदेहितुल्य के चूलिका तथा कन्द नामक भेद से। किसी काव्यरचना में वर्णित संक्षिप्त अर्थ का दूसरी रचना में विस्तारपूर्वक वर्णन करना प्रतिबिम्बकल्प का तैलबिन्दु भेद है। तुल्यदेहितुल्य का चूलिका भेद समान अर्थ को कहकर उसकी अपेक्षा कुछ विशेष अर्थ को कहने से सम्बन्ध रखता है और तुल्यदेहितुल्य का ही एक भेद कन्द एक अर्थ को उसके अंकुर रूप विशेष प्रकारों से चित्रित करने से सम्बद्ध है। यह तीनों भेद पूर्व रचना की अपेक्षा परवर्ती रचना में वर्णन के कुछ व्यापक रूप से सम्बन्ध रखते हैं। तैलबिन्दु में दूसरी रचना में उसी अर्थ का केवल विस्तृत रूप में वर्णन कर दिया जाता है। चूलिका में पूर्व रचना के समान ही अर्थ का वर्णन होता है किन्तु उसमें कुछ विशेषता का सम्बन्ध और जोड़ दिया जाता है। कन्द में एक ही अर्थ को लेकर उसके अङ्कुर रूप विशेष प्रकारों से चित्रित किया जाता है। वह भी एक संक्षिप्त अर्थ के विभिन्न प्रकार से वर्णन रूप विस्तार से सम्बद्ध है। उसी अर्थ का विस्तार तैलबिन्दु की विशेषता है। उसी अर्थ का नहीं, किन्तु समान अर्थ का कथन और उसमें कुछ
1. संक्षिप्तार्थविस्तरेण तैलबिन्दुः
काव्यमीमांसा - (द्वादश अध्याय) सममभिधायाधिकस्योपन्यासश्चूलिका । कन्दभूतोऽर्थः कन्दलायमानैविशेपैरभिधीयत इति कन्दः
काव्यमीमांसा - (त्रयोदश अध्याय)