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वस्तुसञ्चार :
पूर्व कवि ने किसी वस्तु के लिए जिन उपमानों का प्रयोग किया हो उनके स्थान पर उसी वस्तु
के लिए दूसरे उपमानों का प्रयोग वस्तुसञ्चार है।। धातुवाद :
जिस वस्तु का वर्णन किसी कवि ने शब्दालङ्कारों का प्रयोग करके किया हो उसी का वर्णन अर्थालङ्कारों का प्रयोग करते हुए करना धातुवाद है।2 सत्कार :
किसी कवि ने जिस सामान्य वस्तु का वर्णन किया हो उसी का विशेष रचना द्वारा विशेष रूप में
वर्णन सत्कार है। जीवञ्जीवक :
काव्यरचना के प्रारम्भ में पूर्वकवि की रचना के समान अर्थ का वर्णन किन्तु बाद में अर्थात्
उपसंहार में भिन्न अर्थ का वर्णन जीवञ्जीवक है।4
भावमुद्रा :
प्राचीन कवि के भाव या अभिप्राय का चित्रण भावमुद्रा नामक भेद है।5
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तद्विरोधी :
पूर्व कवि की काव्यरचना के भाव के विरूद्ध काव्यरचना तद्विरोधी नामक भेद है 6
अर्थहरण के इस परपुरप्रवेश सदृश नामक भेद में सम्पूर्ण अर्थ की नहीं, किन्तु केवल मूल वस्तु की एकता होती है। साथ ही रचना या वर्णन प्रकार में भेद होता है। एक ही मूल वस्तु को कवि अपनेअपने ढंग से भिन्न रूप में वर्णन करें तो वे भिन्न ही हो जाती है। मूल वस्तु की एकता रूप होने पर भी
काव्यमीमांसा - (त्रयोदश अध्याय) में सभी
1. 'उपमानस्योपमानान्तरपरिवृत्तिर्वस्तुसञ्चारः' 2. शब्दालङ्कारस्यार्थालङ्कारेणान्यथात्वं धातुवादः 3 तस्यैव वस्तुन उत्कर्षेणान्यथाकरणं सत्कार: 4 पूर्वसदृशः पश्चाद्भिन्नो जीवञ्जीवकः
प्राक्तनवाक्याभिप्रानिबन्धी भावमुद्रा 6 पूर्वार्थपरिपन्थिनी वस्तुरचना तद्विरोधी