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________________ [221] दो भिन्न-भिन्न अर्थ हैं जो केवल सादृश्य के कारण अभिन्न न होने पर भी अभिन्न से प्रतीत होते हैं। किसी पूर्व कवि की रचना के अत्यन्त सदृश किन्तु वस्तुतः भिन्न अर्थ वाली रचना अच्छे कवि भी प्रायः करते हैं-अत: अर्थहरण का यह प्रकार सभी कवियों के लिए ग्राह्य भी है। यह तुल्यदेहितुल्य अर्थ भी आठ प्रकार का है-विषयपरिवर्त, द्वन्द्वविच्छित्ति, रत्नमाला, संख्योल्लेख, चूलिका, विधानापहार, माणिक्यपुञ्ज, कन्द। विषय परिवर्तः : एक ही वस्तु की दूसरे विषय से योजना करने पर उसके दूसरे रूप की प्राप्ति होना विषय परिवर्त नामक भेद है। द्वन्द्वविच्छित्ति : जो विषय दो रूपों में वर्णित हो उसे एक निश्चित विषय या वस्तू का रूप दे देना द्वन्द्वविच्छित्ति रत्नमाला : पूर्वकवि द्वारा वर्णित किसी अर्थ को दूसरे अर्थों से व्यवहित या युक्त कर देना रत्नमाला है 3 संख्योल्लेख : एक रचना में किसी वस्तु की जो संख्या कही गई है उस वस्तु की उससे विपरीत संख्या का उल्लेख यदि कोई करता है तो संख्योल्लेख नामक भेद है 4 चूलिका : किसी पूर्व कवि द्वारा कहे गए अर्थ को कहकर उसकी अपेक्षा कुछ विशेष अर्थ का भी उल्लेख करना चूलिका नामक भेद है 5 यह समान और असमान दो प्रकार की होने से संवादिनी और । 1 तस्यैव वस्तुनो विषयान्तरयोजनादन्यरूपापत्तिर्विषयपरिवर्तः 2 द्विरूपस्य वस्तुनोऽन्यतमरूपोपादानं द्वन्द्वविच्छित्तिः पूर्वार्थानामर्थान्तरैरन्तरणं रत्नमाला 4 सङ्ख्यावैषम्येणार्थप्रणयनं सङ्ख्योल्लेख: 5 सममभिधायाधिकस्योपन्यासश्चूलिका काव्यमीमांसा - (त्रयोदश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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