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प्रतिबिम्बकल्प के आठ भेद-व्यस्तक, खण्ड, तैलबिन्दु, नटनेपथ्य, छन्दोविनिमय, हेतुव्यत्यय, सङ्कान्त और सम्पुट है-जिन्हें भली भाँति जानकर त्याग देना ही सर्वथा उचित है।
व्यस्तक:
किसी कवि की रचना के किसी अर्थ को लेकर उसका क्रम बदल देना अर्थात् जो बात पहले
कही गई है उसे बाद में तथा जो बाद में कही गई है उसे पहले कहना व्यस्तक नामक भेद है।।
खण्ड:
किसी कवि की रचना में पूर्णरूप में वर्णित किसी अर्थ के केवल अंश को ही लेकर उसका
वर्णन करना खण्ड कहलाता है।
तैलबिन्दु :
किसी संक्षेप में वर्णित अर्थ का विस्तार से वर्णन करना तैलबिन्द भेद है 3
नटनेपथ्य:
किसी भाषा के अर्थ को लेकर उसे किसी अन्य भाषा में वर्णित करना नटनेपथ्य नामक भेद
है। 4 यहाँ केवल भाषा में परिवर्तन होता है, अर्थ में तात्विक भेद नहीं किया जाता।
छन्दोविनिमय :
केवल छन्द का परिवर्तन छन्दोविनिमय कहलाता है।5 एक भाषा का कवि जिस छन्द में
रचना करता हो, दूसरा कवि उससे भिन्न छन्द में रचना करता है, किन्तु अर्थ बिल्कुल वही होता है।
1. 'स एवार्थः पौर्वापर्यविपर्यासाद् व्यस्तकः' 2. 'बृहतोऽर्थस्यार्द्धप्रणयनं खण्डम्' 3 'संक्षिप्तार्थविस्तरेण तैल बिन्दुः' 4. 'अन्यतमभाषानिबद्धं भाषान्तरेण परिवर्त्यत नटनेपथ्यम्' 5 'छन्दसा परिवृत्तिश्छन्दोविनिमय:'
काव्यमीमांसा - (द्वादश अध्याय)
में सभी का उल्लेख।