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उत्पन्न आचार्य राजशेखर अपने वंश के नामसे अपने आप को गौरवान्वित समझते थे। इसी कारण 'काव्यमीमांसा' में उन्होंने अनेक स्थानों पर अपने विचार 'इति यायावरीयः' कहकर प्रस्तुत किए हैं। कीथ महोदय आचार्य राजशेखर को क्षत्रिय कुल में उत्पन्न कवि मानते थे, क्योंकि उनके विचारानुसार यायावर कुल सूर्यवंशी क्षत्रियों का कुल है। किन्तु कीथ महोदय ने आचार्य राजशेखर को क्षत्रिय कन्या से विवाह के कारण क्षत्रिय मान लिया। किन्तु यायावर वंशके राजशेखर ने स्वयं को उपाध्याय कहकर भी अपना ब्राह्मणत्व सिद्ध किया है। 'काव्यमीमांसा' में कविचर्या नामक अध्याय में कवि के
सन्ध्यावन्दन, पूजापाठ तथा पठनपाठन की चर्चा की गई है। यह सभी कार्य ब्राह्मण के ही हैं।
महाराजाधिराज महेन्द्रपाल का गुरू होना आचार्य राजशेखर की ब्राह्मणवृत्ति के अनुकूल ही है। 'अत्रिसंहिता' में ब्राह्मण तथा क्षत्रिय के कर्मों के अन्तर का उल्लेख है।2 आचार्य राजशेखर जिस यायावर वंश से सम्बद्ध थे, उन यायावरों का उल्लेख बौधायन धर्मसूत्र तथा महाभारत में भी है। बौधायन धर्मसूत्र के यायावर वे भिक्षु हैं, जो उत्तम जीविका से निर्वाह करते हुए शाला या घरों में रहते थे 3 महाभारत के आदिपर्व में यायावरों को व्रतधारी ऋषि कहा गया है ।
निष्कर्षत: आचार्य राजशेखर का उपाध्यायत्व उन्हें वृत्यनुसार ब्राह्मण ही सिद्ध करता है, तो उनका यायावर वंश ब्राह्मणों का ही था और आचार्य राजशेखर महाराष्ट्र के यायावरवंशीय ब्राह्मण थे।
1. "He was of a Maharashtra Kshatriya family of the Yayavaras, who claimed decent from Ram."
(The Sanskrit Drama-A.B. Keith)
(Page - 231, Ed. 1954) 2. "कर्म विप्रस्य यजनं दानमध्ययनं तपः। प्रतिग्रहोऽध्यापनं च याजनं चेति वृत्तयः॥ क्षत्रियस्यापि यजनं दानमध्ययनं तपः। शस्त्रोपजीवनं भर्तृरक्षणं चेति वृत्तयः ।।
(अत्रिसंहिता - श्लोक 13-14) 3. “अथ शालीनयायावराणाम्।" "वृत्त्यावरया यातीति यायावरत्वम्।"
(बौधायनधर्मसूत्र, प्र-3, अ०-1, श्लोक-1-14) 4. "यायावरा नाम वयमृषयः संशितव्रताः।"
(महाभारत, आदिपर्व-41/16)